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________________ (५१८||गुणस्थानद्वारे द्वादशक्षीणमोहगुणस्थानप्रसंगनः शपकणिप्ररूपणप (बार अंकुरो फुटतो नथी ॥ २३ ।। पूर्व वांधला आयुष्यवाळो सात प्रकृतिनो क्षय कर्यो छे जेणे यो जीव अप्रतिपतित परिणाम वालो छतो जो मरण पामे तो ते निश्चये देवोमांज उत्पन्न थाय छ । २४ ।। अने पूर्वबद्धायु जीव पहता परिणाम बाळो थयो छतो जो मरण पामे तो विशुद्धिने अनुसारे चारमांनी कोइपण गतिमा जइ शके ॥ २५ ॥ हवे पूर्ववद्धायु जीव होय अने अखंड (दीर्घ ) आयुष्यवालो होय ने तेथी जी ते क्षपक जीव मरण नपामे नोपण (ते क्षपक) सात प्रकृतियो क्षय कर्या वाद (सायिक सम्यकत्व पाम्या बाद ) अवश्य विश्राम पामे आगळ क्षपकश्रेणि न करे ( अर्थात ने देशलपक कहेवाय)॥ १६ ॥ हये सर्वक्षपक जीव ५ प्रकृनियोनो क्षय करीने त्यारवाद देवायुप्य-नरकायुष्य-ने तिर्यंचायुष्य क्षय करे. १ मे इर्शनसमा क्षय कर्य ने ने ' देशनपक " अने सर्वमोहनीयनो अय करे ते "मक्षपक", २ ए ३ भागुणा भानामां नमी दोषण आयुष्य यधनी योग्यता टाळे ए हेतुथी ३ आयुष्यनो क्षय आटमे गुणटाणे करे पम कवाय. ( प्रारंभक ) मनुष्य होय अने निष्ठापक चारे गनिमां पण होय छे, क' छै के "पवगो उ मणूसी निषगो होइ चजसु वि गईसु" अही आटलु वि शशेष समजषानु है के-जी क्षपकश्चणिना प्रारंभ पूर्व घद्धायु । आयुष्य बांध्यु होय अने ) क्षपकणि आरंभे अने अनन्तानुन्धिनो क्षय यया पछी तरनज मग्ण थवाथी कदाच अट की जाय तो कदाचित् अनन्तानुबन्धिमा वीजरूप मिथ्यान्वनी क्षय न थयेट होघापी मिश्यात्योदये फरो पण अनन्तानुयन्धिओने उपचय ( पकटा ) करे. अने मिथ्यात्व क्षय पाम्युं होयतो मिथ्यान्यचीजमो अभाव थषाथी अनन्तानुबन्धि ओनो उपचय करतो मथी, जेनु म. मक ( अनन्तानुबन्धि ३ दर्शनमोहनीय ) क्षय पाम्युं छै तेयो जीब अतिपतित ( नहिं पडघाइ) परिणामी छनी अवश्य देवलोकर्मा उपजे. अने प्र. निपतित परिणामी छनो भिन्न भिन्न परिणामांनो मभव होवायी परिणामने अनुसाचे कोपण गतिमा उत्पन्न थायछ, घायु छोरा छतां पण दीघ आयु होगाथी जो ते बनते काल न करे तो साफ क्षय थये छतं निश्चयथी उभी रहे ( अटक ) परन्तु चारित्रमोहनीयमी शपणानो आरंभ न करे, पण कोक जीव उपशमश्रेणि करें, शङ्का क्षायिक सम्यक्त्र पामेलो जीव घटल्लामे भधे मोक्ष जाय? उत्तर-अबदायु चरमशरीरी जीव क्षायिकसम्यक्त्व पामे तो तेज भये मोक्ष जाय, देघ अथवा नरकगतिनु आयुष्य बांध्या पछी क्षायिकसम्यक्त्व पामे तो प्रथम भष क्षायिकसम्यकस्यप्रस्थापक मनुष्यनी, यीजो भव देव अथवा सरकनी अने त्रीजो भव चरमशरोगियो मनुपनी पामी ते त्रीने भय माक्षजाय पटल
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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