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|| श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३४)
((१७) करे, आसामतिक्षप पाम्ये छते ते जीव कृतकरण कहेवाय हे ॥ २० ॥ पूर्व पांला आयुष्या जीव क्षपकश्रेणिनो प्रारंभ करनार जो अनन्तानुबन्धिनो क्षय कर्याबाद आयुष्यनो अन्त आववाथी पकश्रेणिथी ) निवृति पाने छे ||२१|| तो ते अनन्तानुबन्धिने उत्पन्न करवामां बीजभूत एवा मिध्यात्वनो विनाश नहि थयेलो होवाथी मिध्यात्वनो उदय थतां पुनः अनन्तानुबन्धिनो बंध ( उपार्जन ) करे छे || २२ || अने मिथ्यावरूप वीज क्षय पाम्ये छते पुनः अनन्तानुबन्धिनो (उत्पत्ति करके वृक्ष बीज बळी गये छ
१ सम्यकृत्यमोहनीयनो क्षय करतां ज्यारे सम्यक्त्वमोहभोगनी सत्ता ८ वर्ष प्रमाण रहे त्यारे ते ओम निश्चयनयथी " दर्शनमोहनीयक्षपक क हेधाय भने सम्यक्त्वमोहनीयती अन्त्यखंड उकेरे ते खते " कृतकरण कडेवाय. ए कृतकरण काळमां वर्ततो जीव मरण पामी चारे गतिमांजर यां किसम्यक्त्व पामे माटे क्षायिकमम्यकन्य पासवानी कियाओनी प्रारंभक मनुष्यज होय ने सम्यक्त्वमोहनीयना दलीयानी सर्व क्षय करी क्षायिकसम्यक्त्य पासनार ( क्रियानिष्ठापक ) चारे गतिना झवी होय.
थना असंख्याता भागो [ खंड ] करे, एक भाग अवशेष रहे, ते पछी ते एक भागता पण असंख्याता भागो गंडे एक बाकी राखे प प्रमाणे केदलाक स्थि ति खंडो गये छते मिश्रमोहनीय आवलिकामा थयुं अने ते बस्ने सम्यकत्वमोहनीयनुं स्थितिसत्कर्म आठ वर्षप्रमाण रहेछे, निश्चयनयमते आ बखते सफलविघ्नमो विनाश थवाथी दर्शनमोहनीयनी क्षपक कहेषाय से, त्यारबाद सम्यक्त्वमोनीयनुं अन्तमुहतं प्रमाण स्थितिखण्ड उकेरे, अने तो उ दयसमयथी आरंभी प्रक्षेप करे मात्र उदयसमये सर्वस्तोफ, तेनाथी खोजे समये असंख्यात गुण झीजें लमये तैनाथी पण असंख्यातगुण. प प्रमाणे यावन गुणश्रेणिनुं शिखर आये त्यांसुधी कहता जत्रु. तेथी आगळ विशेषशीन विशेषहीन कहेवु. यावत् चरमस्थिति आवे आ प्रमाणे अन्तरमुहूर्तप्रमाणवाळा पूर्वपूर्वेकरता अ संख्याता गुणा अनेक स्थितिखण्डीने उकेरे अने निक्षेप करे ते यावत् विथचरम ( उपान्त्य ) स्थितिखण्ड आवे त्यांसुधी उकेरे भने निक्षेप करे उपा म्यस्थिति खण्ड करता चरमखण्ड असंख्येयगुण जाणवु, (कम्मपपडीमां उपा न्य स्थितिखण्ड करता चरम स्थितिखण्ड संख्यातगुण कडेल हे.) अने चरम ( छेलो ) स्थितिखण्ड उके छते ते क्षपक 'कृत करण थयो म प्रमाणे क वाय आ कृतकरणना फालमां वर्ततो कोक जीव काल पण करे अने चारे गतिकीनी कोईपण गतिम उत्पन्न याय, प्रथम ते जीव शुक्कलेश्यामां हती.
मां तोते कोइ पण लेश्याने पामं तेन कारणथी आ क्षपकश्रेणिनो प्रस्थापक
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