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________________ (५१६)। गुणस्थानद्वारे द्वादशक्षिणमोहगुणस्थानप्रसंगतः सपश्रेणिप्ररूपणम् । [छार वाळो), अति शुद्ध परिणामवाळो, उत्तम संघयणबालो. त्यां पूर्वनो जाणनार अप्रमत्त (होय तो ) शुक्लध्यानने पाप्त थयेलो, अहिं केटलापक आचार्य धर्मध्यानने प्राप्त ययेलो होय एम कहे छे. अने विशेषावश्यकवृत्तिा पूर्वधर-अपमत्त-एवा (मुनि) शुक्लध्यानने प्राप्त ययेला आ मुनि क्षपकणिने अङ्गीकार करे। अने शेष अविरतादि (त्रण) धर्मध्यानने मान थया छता क्षफ्कश्रेणि अङ्गीकार कर. एवो निर्णय छ ।” ने क्षपकश्रेणिनो अनुक्रम आ प्रमाणे-चतुर्थअविरतसम्यग्दृष्टि विगेरे चार [ ४-५-६-७ ] गुणस्थाननी अंदर ते जीव अन्तर्मुहसमां समकाले प्रथम (चार) अनन्तानवन्धिनो विनाश ( वय । करे ॥ १९ ॥ तदनन्तर अनुक्रमे मिथ्यात्वमोहनीयनो-मिश्रनो-अने सम्यक्त्व मोहनीयनो क्षय थाय छे. ते पछी अनिवृत्तिकरणमा प्रवेश करे भ्यां पण स्थितिधात विगरे सर्व पपा ते बीज रोते करे, अनिवृतिकरणना प्रथमसमये प्रणे वर्शन मोहनीयमा पण देशोपशमन्ना निर्धात अने निकायमानो व्यवच्छेद थायले, दर्शनमोहमीयधिकन जे स्थितिसत्कर्म अवशिष्ट छे ते अमिवति करणना प्रथमसाय. थी मांडी मे तिघातादिवर घात कंगन घातकरातु दजास्थितिवडा गये छते असंक्षिपंचेन्द्रियना, स्थितिसत्कर्म सरलु थाय छे त्यारबाद स्थि. तिखंडोना सडनपृथकव गये छते चतुरिन्द्रियमा स्थितिमत्कम भेटल. ते पो वली तेटला स्थितिसंहो गये श्रीन्द्रियमा स्थितिमत्कर्म जेटलं. तेमाथी पण नेटला स्थितिखंडो गये हीन्द्रियना स्थितिसत्कर्म जेटलु, तेमांथो पण दला स्थितिढो गये पकेन्द्रियना स्थितिसत्कर्म जेटल, तेमाथी पण तेटला स्थितिबंदो गये पल्यापमना असंख्येयभागप्रगण (एकेन्द्रियना स्थितिसम्कर्म प्रमाण पाली सेटमा स्थितिखटी गये छने पस्योपममात्र स्थितिसकम थाय छ, आ णिकार महाराजानु कथन छे. पंचसंग्रहकारना कथन प्रमाणे तो पण्योपमनख्येयभागप्रमाण] स्थतिसत्कम थाय है, तेपछी ते ऋणे वर्शनमोहनीयना पण दरेकदरेफनो एकएक मख्यातमोभाग मुकी शेषतयनो नाश करे ते पछी धली ते मुफेला पक संख्येयभागनो पकसंख्यातमी भाग मुकी याको विनाश करे । प्रमाणे हजागे स्थितिघाती जायछे. त्यारपछी मिथ्यात्वना असंख्याताभागोनों खंड करे, अने सम्यकत्व तथा मिश्रमोहनीयना संख्याताभागांना खड करे, आ प्रमाण घणा मिनिम्मंडी गये छते मिथ्यात्वन दलियु मालिकामात्र थ', अने सम्यक्त्व तथा भिथमोहमीयनु पल्योपमना अमंख्यातमा भागप्रमाण थयु मियान्य सम्बन्धी नं. इन कराता आ स्थितिबढी सम्यकन्य अने मिश्रमोहनीयमा प्रक्षेप करे, मि. श्रना होय ने सम्यम्नमाइनीयमा अने सम्यत्व मोहनीयता नाचना पोतामा स्थानमा हवे आश्रमिकामात्र जे मिश्यान्यनु दलीयु र हतुं ते स्तिवुक सं. मे मम्यक्त्यमोहमीयमा प्रक्षेप करे. त्यारपछी सम्यक्त्व अने मिश्रमोनो
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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