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३१] ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३१) (११) पर पुनः वारंवार अनन्न (काळ सुधी) प्रतिपातने ( अर्थात् अनन्त काळ संसार परिभमणने ) पामे छ माटे तमारे निश्चये लेशकषाय बाफी रयो होय तो तेटला मात्रनो पण विश्वास न ज फरवो" ॥१॥ (विशे• भाष्यगाथा १३०९) हवे जे जीव (११मा गुणस्थानथी) भवनो क्षय थतां (आयुष्य पूर्ण धवाथी)पनित थाप
- - - - - - - - -- - - - - अने प्रन्याल्यानाधरण प ये लोभ उपशाम्त यया पटले २७ प्रकृति उपशान्त थइ, अने तेज समग संज्वल्ठमलोभनो बन्धव्यवच्छेद अने यादर संचलनलोभना उदय उदीरणानी व्यवच्छेद अने नषमा अनिनियादरसंपराय गुणम्याननो पण व्यवधछेद थाय छे, आप्रमाणे अहीं अनिवृतिबादरसंपरायगुणस्थानके अनुक्रमे सातयी मांडी पचीशसुधी प्रकृतिओं उपशान्त होय छे, अनन्तानुवन्धि ४ दशममोहनीय ३ ए सातनीउपशमना प्रथम करी दोषायी सात उपशान्त. १, नपुंसकवेदना उपशनमा पाये का शान्त २, सोवेदडपशम्ये मध उपशान्त ३, हास्याधिपटक उपशम्ये पंचर उपशान्त ४, पुरुषवेश्उपशम्ये सोय उपशान्त ५. अप्रन्या यानापरण प्रत्याख्यानावरण के क्रोध उपशम्ये अढार उपशान्त ६, मंखलनौध उपशम्ये आंगणीश उपशान्त ७. अप्रत्याख्यानायरण प्रत्याख्यानावरण वे मान उपशम्ये पकवीश उपशान्त ८, संग्ध.
नमान उपशम्ये बाधीश उपशान्त ९, अप्रत्याख्यानाधरण प्रत्यास्थानाधरण वं माया उपशम्ये चोयीश उपशान्त १०, संज्वलनमाया उपशम्ये एवीश मो. हनीयप्रकृति उपशाम्त या ११, हवे अप्रत्याख्यानाषरण प्रत्याख्यानाषरण धे लोभ अनिवृसिना धरमसमये उपशम्या पटले दशमे समसंपरायगुणस्थानके माता शामोहनीय प्रकृति उपशाग्न था, हवे आ हमसंपायनी कार अन्तमहतघमाण छे. तेर्मा पेठो छत्तो कटटीक लाभली मुभम किट्टीओने उपरनी स्थितिमांयी मंचोने समसंपरायना कालतुत्य प्रथमस्थिति करे अने येदे. बाकीनु सूलमकिट्टीरूप चनाघेर दलोयु अने समयोन आपलिकाहिकमा यांचल न नीयु उपसावे. सूरमपरायना छेल्लासमये अज्यालमलोभ सर्व उपशा. Pस थयों एटले अटाधीश मोहनीयप्रकृतिओ उपशान्त था , तेज समये पांच शानावरणीय ५, चार दर्शनावरणीय, ९, पांच अन्तगय १४, यशःकी निनाम फर्भ ३०, अने उच्चईत्रक १६, ए सोळ प्रकृतिओनी बन्धन्यवच्छेद थान म्याग्बाद अनन्तासमये उपशान्तकषायबीनरागछमस्थ अगीयारमु गुणस्यामक पामे छ, अधों मोहनीयनी अटाघोश प्रकृति ओ उपशान्त पमाय , आ उपशाम्त. मोरगुणस्थान के जघन्यथी एक समय आने उत्क्रपथी अन्तमुहूर्नकाल मुधी रहे छ, ते पछी नियधी पड़े छे पडपार्नु प्रे प्रकारे थाय छ, एक भयक्षयथो अने श्रीजु अड़ा (काल) क्षयथी, भव आयुष्य क्षयमरनारने अने अद्राक्षय उपशान्तनो कालपूर्ण थये. अद्राक्षये पहतो जेवी रीते चढी इतो तेषीज गीते पडे ठे, पटले के ज्यां ज्यां (जे में गुणस्थान के ) यन्ध उदय विगेरे व्यवच्छे पाम्या बता पडता छता ते ते