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________________ .... -:-::.....:..: .:.:.::.:::: :::: : ३१] ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३१) (५०९) (११ यो १०-९-८-७-ने ६ ए रीते) ( प्रमत्त गुणस्थान सुधी आये ॥ ७ ॥ अने कोइक जीव तो त्यांथी ( ६ वा थी ) पण पडतो नीचे (५ ने ४ १) वे गुणस्थाने आवे, अने कोइक तो त्यांची पण नीचे पडी सास्वादन भाव पामीने भयोन आपलिकाद्रिक बर वलीयु पुरधषेवमां वतापेक्षा प्रकारबरे उपशमाये अने मंक्रमाष, समयोन आपलिकाका'ले उपलनमान उपशान्त थयो पटले २२ प्रकृति उपशान्त थइ. जे बसते संपलन मानना बच उदष भने उदीर. णानो व्यवच्छेद थयो तेगा अनन्तर समयथी मांरीने मंश्चलमायानी बीजी स्थितिमाथी पलीयु खपीने पूर्वोक्तप्रकारे प्रयमस्थिति बनाये अने घेदे, अने ते समयथीज मांडीने अप्रत्याख्यानाधरण प्रत्याख्यानावरण भने संवहम ए अमे पण मायाओ पकलाये उपशमाषवा प्रारंभेछ, मंज्वलनमायानी प्रथमस्थिति समयम्यून पण भावनिका शेष रही अप्रत्याख्यानाधरण-प्रत्याख्यानाबरण मायार्नु छरुठीयू संज्वलनमायामां न नांखे, पण सज्वलनलोभमा नांखें, ये मावलिका शेष र आगाल न थाय, मात्र उदीरणाज प्रवत छे. ते पण स्यांसुधीज के यावत आपलिफाशेष न शाय, आषलिका शेष रणे संज्वलनमायाना बन्ध उदय 3दीरणामो म्पबच्छेद थायछे. अने ते बचते अप्रत्याख्यानाधरण भने प्रत्यास्यामावरण प ये मायाओ उपशान्त था एरले घोषोश प्रकृतिको उपशान्त था. अने ते समये प्रथम स्थिति सम्बन्धी एक आवलिका अने उपरनो स्थितिसम्बश्री समयोग आपलिका द्विक पर दलीयु मुकी बाकी सर्व प्रज्वलनमाया उपशमाधवी, त्यारपछी ते प्रथमस्थितिसम्बन्धी एक भापलिकाने स्तियुक मंक्रम संज्वलनलोभमा मंत्रमाणे, अने समयोन आपलिकातिकबद्ध दलोयं पुरुषवेदमा कमा प्रकारे उपशमाये अने सक्रमावे, न्यारयाद समयोन के आपलिकाकाले संबलममाया उपशागत था. पटले २५ प्रकृति उपशाम्त था. ग्यारे संज्वलनमायाना बन्ध उदय अने उदीरणानो व्यवोद थयो सेना अनन्सर ममयथो प्रारंभी संज्वलनलोभनी बीसी स्थितिमांधी दलीयु मेचीने होम वेदशाना कालना ये तृतीयांश कालप्रमाणवाली प्रथमस्थिति पूर्वोकप्रकारे यनाघे भने वैदे. पहेलो एक त्रिभाग तेनुं नाम अश्वकर्ण करणाखा कडेवाय १. अमे बीजो त्रिभाग किट्टीकरणाखानामनी कवाय २, हथे पडेला अश्वकर्णकरणावा मामना त्रिभागमां पतंतो छतो पूर्ष स्पर्धकोमांथी दलोयु लइने - पूर्वस्पर्धको बनाये, रूपर्धकनुं स्वरूप आ प्रमाणे-भहों अनन्तानन्तपरमाशुभोषडे बनेला स्कन्धोने जीष कर्मपणे ग्रहण करेछे, ते एकका स्कन्धमां जे सर्व अधन्यरसवाळो परमाणु तेनो पण रस केलिप्रशाये छेद करता सर्व जीवो करता अमन्सगुण रसाधिभागोने आपछे. एटले एक एक
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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