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________________ (५०८ ) । गुणस्थानद्वारे एकादशगुणस्थानप्रसंगत उपशमश्रेणिस्वरूपम् || (द्वार रण को प्रत्याख्यानावरणकोष अने संञ्चलनकोध ए जणे समफाले उपशमाबचा प्रारंभकरे, हवे संज्वलनकोधनी प्रथमस्थिति समयम्यून त्रण आवळिकाशेरछते अप्रत्याख्यानात्वरण प्रत्याख्यानावरण क्रोधनु वकोयुं संवलनशी धर्मा प्रक्षेप करे नहि, परन्तु संज्वलन मान विगेरेमां प्रक्षेपे, कथुं छे के स मयम्युम जण आवलिका शेष रहो संम्बलनक्रोध पतदूग्रह न थाय. मे आजलिका शेष रहते तो आगाल पण यतो गयो, परन्तु पकली उदीरणाज प्रब छे, अने एक भावकिका बाकी रहे त्यांसुधी उदीरणा हीय, पछी ते एकावखिका अवशेष रहे ते ते संचनक्रोधना बन्ध, उदय भने उदीरणानी व्यवच्छेद थाप, अने अप्रत्याख्यानावरण प्रत्याख्यानावरण कोध उपशारत या पटले के आटले सुधीमां अदार प्रकृतिभी उपशान्त थइ, ते बखते बाकी रहे प्रथमस्थिति संबंधी एक आवलिका अनं समयन्यून आवलिका शिक बज्र उपरनी स्थिति संबंधी दलीयुं छोडोने बाकी सर्व संज्चलनक्रोध उपशमाव्यो, स्थारवाद से प्रथमस्थिति संबंधी एक आवलोकाने लनमानमां स्तिबुक संक्रमे मां भने समयोगश्रावलिकाशिक बदलीयु पुरुषषेत्रमां अणावेला प्रकारडे उपशमा अने संकमाये, पटले समयोन वे आवलिकाप्रमाण काले कोध उपशमाच्यो, पटले भोगणीश प्रकृतिओ उपशान्त यह इसे ज्यारे संवोधना बन्ध उदय उदीरणानो व्यवच्छेद थयो सेना अनन्तर समबधी आरंभी संचलन माननी बोझो स्थितिमांची दलीयु' लेवीने प्रथमस्थितिरूप बनाये अने वेदे तेमां उदय समये योहुं प्रक्षेप करे बीजी स्थितिमां असंख्यातगुणं, त्रीजी स्थितिमां असंख्यातगुणु, ५ प्रमाणे बाबत प्रथमस्थितिनो चरमसमय आये त्यांसुधी कहेतुं प्रथम स्थितिकरवाना प्रथमसमयथी मांडीक अमत्याख्यातावरण प्रत्याख्याभावरण अने संज्वलन प त्रणे मानीने एक साथै उपशमावषा शरुआत करे संज्वलनमाननी प्रथम स्थिति समयीन त्रण आवलिका प्रमाण शेष रहने छते अप्रत्याख्यानावरण प्रस्याध्यानावरण माननुं वलीयु संचलन मानमां न नांखे पण संज्वलनमाया विगेरेमां नांखे, बळी घे आवलिका शेष रथे छते आगाल पण व्यवच्छेद थाय, मात्र उदीरणाज प्रवर्ते. अने ते पण एक आवलिका अवशेष रहे त्यांसुधी जाणबो, आबलिका शेष छते तो संज्वलन मानना यन्ध उदय अने उदीरणानो व्यवच्छेद थाय, अने अप्रत्याख्यातावरण प्रत्याख्यामावरण ५ वे मात्र उपशान्त थया पटले प कषीश प्रकृति उपशान्त यह तेज समये प्रथम स्थिति संबंधी एक आषलिका अने समयोग आषलिकाशिक बज्र उपरमी स्थिति संबंधी दलोयु सुकोने बाको सर्व संबलणमान उपयभाष्यों, त्यारवाद ने सलमामनी प्रथम स्थिति सम्बन्धि एक मावलिका स्तिबुक संक्रमे संस्वनमायामां प्रक्षेप करे, अनेस
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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