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________________ ३१) ॥ श्रीलोफमकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० २३१) (५०५) अने अपमत गुणस्थानमां सेंकडोवार पराशत्ति (आत्र जा) करीने अने अपूर्वकरण गुणस्याने जइने त्यारबाद [नयमे गुणस्थाने] नपुंसकवेद-खीवेद-हास्यादि ६-पुरुषवेदत्यारवाद अनुक्रमे मत्याख्यानावरण-अप्रत्याख्यानी एवेकोध-संज्वलन क्रोध नेचीज रीने भत्याख्यानावरण-अप्रत्याख्यान एवे मान-गे संज्वलनमान-नेवीजरीते प्रत्याख्यानावरण-अप्रत्याख्यान एवे मापाने संज्वलनमाया तमाम बीजो ने बीजो (अमत्यारव्या पाल्यान) लोमा ३० प्रतियोन नमे गुणस्थाने उपशान्त करीने कार करमारने ज्यांसुधी अप्रत्याख्यामाबरण-प्रत्याख्यानावग्ण कोधनी अप. शम थाय नहि स्पांसुधी संज्वलमक्रोधनों उदय बर्ते छ, पज प्रमाणे संज्वळममानोदये श्रेणिकरनारने ज्यांसुधी चे माननी उपशम थाय नहि त्योसुधी संज्वलनमानती उदय व छे, तेज प्रमाणे संज्वलनमायाना तथा लोभना उघयमां पण समजवु, आ रीते मर्यकर्मन अन्तरकरण उपरना स्थितिभागनी अपेक्षाये मरखं अने मौचना स्थितिभागनी अपेक्षाये उपर यनाव्या प्रमाणे विषमतावा होय छे. जेटसे काले स्थितिखंडनो घात करे अथवा अ. भ्यस्थितिबंध करे तेटले काले अन्तरकरण पण करे. पटले के स्थितिघात अन्य स्थितिबंध अने अन्तरकरण पचण्ये पण समकाले शक करे अने ममकालेज पूर्ण थायछे. इथे अन्तरकरण संयंधि बलीयानो प्रक्षेपविधि आ प्रमाणे-जे कर्मोनो ने धनते बन्ध अने उदय ए थेट विद्यमान होय सेमी. नु भन्नरकरणनु दलीयू प्रथम स्थिति अने योजी स्थिति प बेमा प्रक्षेप करे, ओम पुरुष घेवोदये धेणिमा पहनार पुरुषमा दलीयानोबे स्थितिमा प्रक्षेपकरे, जे कर्म प्रकृतिओनो केवळ उदयज विद्यमान होय धन्ध न होय ते कर्मानु अन्तरकरण संयंधि दळीयु प्रथम स्थितिमांज प्रक्षेप करे, बीजी स्थितिमा न माने, जेम श्रीवेदना उदये घेण्यासद जोव श्रीधेदना दलोपानो प्रथम स्थितिमा प्रक्षेप करे, पली में कर्मप्रकृतिओनो उदय विद्यमान न होय केवल बन्धन होय तेओk अम्मरकगण मंबंधी दलोयुं बीभी स्थितिमांज नांखे प्रथम स्थितिमा न मांये, जेम मंग्वलनक्रोधादय श्रेण्यावर जीव संचालनमान विगेरेना वलीयानो बीजी स्थितिमांजप्र. क्षेष करे, सेमज में कर्मप्रकृतिआगो बन्ध पण न घर्ततो होय अने उदय पण न विच. माम होय ते कर्मोन अन्तरकरण संबंधी दलीयु पाप्रकृतिओमां प्रक्षेप करे. जेम अप्रत्याख्यानाधरण प्रत्याख्यामापरणकपायोन दलीयु मंज्वलनकायर्मा प्रक्षेप करे, अहीं अनिवृत्तिकरणमां पणुं वक्तव्य कोयानु छै परन्तु विस्तार ना भयथी अहीं ऋयु नयी विशेषार्थयि कम्मपयबीटीका विगेरेधी जाणवू हवं अन्तरकरण करीने (कमप्रकृतिमां अन्तरकरणना धीजे समये ए प्रमाणे कधुछे ) नपुंसकवेदने उपशमापं. नपुंसकवेदोपशमना घिधि आ प्रमाणे-पहेले समये स्लोक (थोडा इलोया) उपशमाचे, बीभे समये तेषी असंख्यातगुण उपश
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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