SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 541
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५०४) ॥ गुणस्थानबारे एकादशोपशान्तमोहगुणस्थाननिरूपणम् ।। द्विार छलां वण सङ्घ-यणवाळा नहि. ॥१॥ कयु छ के-"वळी उपशमणि प्रथमनां त्रण संघयणबडे आरोदाय छे [अङ्गीकार थाय छ.]" ए प्रमाणे कर्मस्तय (बीजा फर्मग्रन्थनी धृत्ति) मा क छे, वळी आ (उपशमश्रेणि करनार) नोव प्रमत्त - -- - - - - ___ आ प्रमाणे वर्शनधिकनी उपशमना कर्या चाद चारित्रमोहनीयनी उपशमना करवामाद ग्रथाप्रवृत्तफरणादि पण करणो करे छ, करणानु स्वरूप पूर्वनी माफक जाणवु. मात्र यथाप्रवृत्तकरण अप्रमत गुणस्थानके, अपूर्यकरण अपूर्वकरणगुणस्थानके अने अनिवृत्तिकरण अनिवृत्तिकरणगुणस्थानके माणया, तेमां अपर्वकरणमा स्थितिघातादि पूर्वनी माफक अपत छे. विशेषमा अहीं नहि बंधाती सर्ष अशुभप्रकृतिआनो गुणसकम प्रवत्तछे, अप करणकास्टमी मंख्यातमी भाग गये ढ़ते निद्रा अने प्रचला प वे वर्शनाघरणीयनो बन्धविच्छेद थाय छ. न्यारयाच घणा इजारो स्थितिष डो गये इसे अपूर्वकरणकालना मंख्याता भागो गया एक भाग अबशेष रहेछे. अर अवसरे देवगति १. देवानुग: २. पानेन्द्रियजाति ३, वैकिय ५, आहारक ५ नेजस ६ कार्मण ७ एकर शीर माना ग या पकिय अंगोपाग ९, आ. शरक अंगोपांग १०, पर्ण ११, गंध १२, रस १३, मारशं १४ प चतुष्टय, अ. गुरुलघु १५, उपधात १६, पराधात २७, उच्छ्वास १८, म १९. यादर २... पर्याप्न २१, प्रत्येक २२, प्रशस्तविहायोगति २३. स्थिर २४, शुभ २५, सुभग २६, सुस्बर २७, आवय २८, निर्माण २९, अने तीर्थंकर नामकर्म ३.. पधील प्रकृतिओनी वन्ध व्यवच्छेद पामे, त्यारबाद स्थिलिखंड पृथकाय गये अपूर्वकरणकालना परमसमय हास्य ३. रति २, भय ३, अने जुगुप्सा ४ प चारनो बग्धव्यवच्छेद याय, हास्य १, रति २, अगति ३, शोक ४, भय ५, अने जुगुप्सा ६, ए षट्कनो उदय व्यथरछेद अने सबकोभा देशोपशमना निधत्ति अने निकाचना प करणोनो व्यवच्छेद पाय छे. ते पछी अनन्तरसमये अनिवृसिकरणमा प्रवेश करे अमे से अनिवृत्तिकरणमा पण स्थितिघात बिगेरे पूर्वनो माफक को छ, न्यारवाद अनिवृत्तिकरणकालना संख्याता भागो गये छते यारकषाय अने नव नोकवाय ए एकवीश मोहनीय प्रकृति मोनु अम्मारकरण करे छे तेमां जे थेदनो अने जे संज्वलनकषायनो उपय वर्तनी होय ते येउनी पोत पीताना उदयकाल प्रमाण प्रथम स्थिति करे अने वाकीना अगीआर कषाय म. ने आट नोकषाय ए आंगणोशनी आपलिकामा स्थिति करे, महीं घारे सवालनकषायो अने प्रणे वेदोन पोतपोतानु उदयकाल प्रमाण आ प्रमाणे-स्त्रीय नपुंसकवेदनों उदयकाल सर्वस्तीक अने परम्परतुल्य, नेनाथी पुरुषवेदनो उदयकाल संत्र्यातगुणो, तेनाथी पण संज्वलनकोधनी विशेषाधिकतेनायो पण ज्व लनमाननो विशेषाधिक, लेनाथी पण संज्वलनमापानी विशेपाधिक. तेनायो पण संज्वलनहीभता विशेषाधिक, नेमां ज्वलनकोधोदये उपशम्|णि अंगी
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy