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________________ (५०२ ) || गुणस्थानद्वारे एकादशगुणस्थानप्रसंगत उपशमश्रेणिस्वरूपम् || (द्वार विरत अथवा प्रमत्त के अममत्त थयो तो [अर्थात् ए चारे गुणस्थानमां] उपक्षमावी ( मतान्तरे विसंयोजी ) ने त्यारबाद विशुद्धबुद्धिवाको एबो ते जीव ऋण दर्शन मोहनीयने उपमाये ॥९९- १२०० || कर्मग्रन्थनी अवचूरीमांतो कहुं छे के" अहिं उपशमश्रेणि करनारो जीव अप्रमत्तयति ज होय छे, अने केटलाएक आचार्य सभाम कराय छे. प्रथम स्थितिमी आवलिकामा रहेलु दळीयुं वेदाती परप्रकृतिओम स्तिलक्र से संक्रमासे अने अन्तरकरण करें छते बीजे समये अमरतानुबन्धिनुं उपरनो स्थितिनु वळीयुं उपशमाथे से आ प्रमाणे - प्रथमसमये थोहुँ, बीजे समये तेथी असंख्येयगुण, श्रीधे समये मेथी असंख्येयगुण, पम यावत् अन्तर्मुहूर्त काले अनन्तानुबन्धिने संपूर्ण उपशमाने, अर्को हवे संपूर्ण अनन्तानुबन्धिकषायो उपशान्त थया. उपशान्त पया पटले जेम हेणु (रेती) तो ढगलो पाणीना बिन्दुओना समूह सोंची सींची लाकडाना धणे घणे ( बुडा अथवा गेल विगेरे ए) कुटायो (दबायो तो खरा रहित थाय छे तंम कर्म रेणुनी ढगळी पण बिशुद्ध रूप पाणीनामवाहवढे लोंची सींची अनिवृत्ति करणरूप घणवढे कुटयो छती संक्रमण -१, उदय-२, उदीरणा-३, मिवश-४ निकाचना-६, प करणाने अयोग्य थाय हे पटले तेषा उपशाम्त करेला कर्ममां आ पांच करणी प्रवर्ती शकता नथी, बीजा आचाय कडे छे के अनन्तानुबन्धिनी उपशमना पती नथी परन्तु विसंयोजनाज थाय छे, बिलंयोजना पटले श्रपणा, ते विलंयोजना करनार अविरत सम्यगपुष्टि होय तो बारे गतिना जीवो पण [उपशमश्रेणि शिवायना प्रसंग ] करे छे, देश चिरत होय तो तिच अने मनुष्यो पण करे छे. अने सर्वविरतोय तो मनुष्यो ज होय हे ते दिसंयोजना करणा माटे पूर्वे बता वेला यथाप्रवृत्त - अपूर्वे अने अभिवृत्ति ए त्रण करणो करमा पढे छे, मात्र अर्थी तफावत पटलोज के अनिवृतिकरणमां पेठा छतां अम्तरकरण हो नयी, अने तेना अभाषथी उपशम पण यतां नथी, भर्ती अपूर्वकरणर्मा अनतानुबन्धिमोक्षपणा करणाने प्रवर्तको जीष सम्पश्वोत्पत्तिती जेम यथाप्रवृत्त बिगंजे त्रण करणो करेछे. विशेषमां अह अपूर्वकरणमां प्रथम समययोज अनस्तानुचन्धिमो गुणसंकम पण कद्देवो. गुण संक्रमषिधि-- अपूर्वकरणमा प्रथमसमये अनन्तानुबन्धिमुं दळीयु शेषकषायरूप पर प्रकृतिमां थोडं संक्रमावे खोजे समये मेथी असंख्यातगुण, श्री समये तेथी असंख्यातगुण र प्रमाणे अपूर्वकरणमा घरसलप्रयसुधी कटेषु. आ गुणसंक्रम पण स्थितिनी अपेक्षाये घणा मोटा एषा प्रथम स्थिति खंडनो अने विशेष विशेषहीन एवा बीजा बोजा विगरे स्थितिखेडोनों जे घास करबो ते घातथी उत्पन्नधयेत्र में उइलमा संक्रम सेनार्थी अनुविद्ध जाणचो आषा उमासंक्रमानुषिद्ध गुणसंक्रमे करीने अपूर्वकरणमां अमरतानुबन्धि क पायनो वाकीनी प्रकृतिस्वरूप बनायवाथी नाशक रेछे अने अभिवृत्तिकर
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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