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३१] ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३१) (५०१) असंख्यातगुणुं त्रीले समये तेथी असंख्यातगुणु ए प्रमाणे यावत् अपूर्षकरणाद्वानो परमसमय आधे म्यांसुधी असंन्यानगुण असंख्यातगुण कहेवू आ प्रमाणे गुणसंक्रमर्नु स्वरूप आणवू,
Pा अपूर्वस्थितिबन्ध--अपूर्वकरणना प्रथमसमये चीजोज स्थितिवन्ध शरुकोछे स्थितिबन्ध अने स्थितिखण्ड पकसाथे शाकराय छे अने पकमाथे समाप्त थायछे. आप्रमाण आ पांचे पदार्थो भा अपूर्वकरणमा एकसाथ आरंभायछे, आ प्रमाणे अपूर्वकरणने स्वरूप जाणवं.
हवे अमितिकरणनु स्वरूप बताथाय छै- मा अनिवृतिकरणमां स. मकालपनि सजोषोनु पफज अध्यवसायस्थान होयछे, पटलेके ! अनिवृतिकरणमा प्रथमसमयमा जेओ भूसकालमा प्रवेश करीगया धर्तमानमा प्रवेशकरेले अने अनागतकालमा प्रधेशकरशे, ते सर्व प्रणेकालना प्रथमसमयनि जीषोनु एकरूपज अध्यवसायस्थान होय. पज प्रमाणे वीनासमयमा पण जे पी गया, वर्ने छ भने धनशे ती सर्वभु पण एका सरचे अध्यवसायस्थान होय छे मात्र प्रथम समयना मध्यवसायस्थाननो विशुद्धिनी अपेक्षाये बीजा ममयना अध्यषसायस्याननी पिशुद्धि, अमग्मगुण होयछे.पज प्रमाणे यावत अनिवृत्तिकरणना चरमसमयसुधी तसत्समयषति धणे कालना सजोषोनु सरखे सरखं अध्यवसायस्थान होय अने ते पूर्वपूर्व समपना अध्यवसायस्यान करता उत्तरोत्तरसमयनु अध्यवसायस्थान अन- . न्तगुण अनन्त गुण विशुद्धियालु झाणवू, आज कारणथी पटळे के आ अनिवृत्तिक रणमा प्रवेश करेला समानकालीन सभाणोओ संबम्धी अध्यवसायस्थानोमां परस्पर निवृत्ति-फेरफार (तरतमता-न्यूनाधिकपणु-जघन्योत्कृष्टादिभाव ) मथी माटेज आनु अनिवृप्तिकरण पद्यं नाम आपेलु छ. भा अनिवृत्तिकरणकाटना भेटला समयो छे ते टलाज सेना पूचंपूर्व अध्यक्षमायस्थान करना अ. नन्तगुणवृद्ध अभ्यबसायस्थानो २ अने तेओनी स्थापना करता मुक्तावनि ( मोतीनी पंक्ति ) ना आकारे स्थापी शकाय है,T000000000000 | आ अनिवृत्तिकरणमां पण प्रथमसमययोज पूर्ण बताघेला स्थितिघातादि पांच पदार्थों पक साथै आरंभाय छे अनिवृत्तिकरणना कालना संख्येयभागो गया याद पक भाग पाको रय छते अनन्तानुषिकापायोनु नीथी आपलिका मात्र मूकी अन्तमुर्त प्रमाण अन्तस्करण अभिनपस्थितिबाधना कालनी स. गम्सा अन्तम हत प्रमाणका ले करे छे, ते आ प्रमाणे-नीचेथी माविका मात्र मुकी उपरनु अन्तर्मुहर्त प्रमाण स्थितिखंड उकरे भने उकेरातुं ते दलोयुं बंधाती परप्रकृतिओमा संक्रमाय स्थितियाधना काळनी सरखा अम्तमुहर्ने अन्तरकरण