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(५००) || गुणस्थानद्वारे एकादशगुणस्थानपसंगम उपशमश्रेणिस्वरूपम् ।। (छार प्रमाण स्थितिने ना करे अने ते बलिकने नौसेनी जे स्थिति मण्डित महि करे तेमा प्रक्षेप करे. अन्तर्मुहृतकाले ते इलियु वण्डाय है, ते पछी बळी तेनाथी नीचेना उपर चसापळ कमी पल्यानंख्येयभाग प्रमाण स्थिति खण्डने उकले अने दलियाने प्रक्षेप करे. प प्रमाणे अपूर्वकरणना कालमा अनेक हजारो स्थितिखण्डो थाय छे. ने अपूर्वकरणना प्रथमसमये :ने स्थिनिकम इतुं ते चरमसमये संख्येयगुणाहीन थयु, आ प्रमाणे स्थितियातनुं स्वरूप जाणवू.
[२] रसघात-अशुभप्रकृतिओनु जे अनुभागसत्कर्म रघु छे. तेना एक अनम्नमा भागने मुक्रीने धाकीना विभागांना अनन्ता अनुभाग भागीन दरेक समये विनाश करतो अम्तमुहुर्तकाले सम्पूर्ण विनाश करे ते पछो यही प्रथम मूकेला अनम्तमाभागनो पक अनन्तमो भाग गृको बाकोना विभागने पूचे कडेला विधि प्रमाणे अन्तर्मुहुर्त काले सम्पूर्ण विनाश करे, प प्रमाणे पक स्थितिखण्डना उत्किरणकाल हजारो अनुभागखण्दो व्यतीत थाय छे. हजारो स्थितिबण्डोये अपूर्वकरणनी परिसमामि चाय छे. आ प्रमाणे रसघा. सनु स्वरूप जाणवु.
(३) गुणणि-कालप्रमाणथी अपृर्षकरण अने मनिवृतिकरणमा कालथी विशेषाधिक करे , सेमां अन्तर्मुहृतप्रमाणगाली स्थितिथी उपरवर्ततीस्थि सम्बन्धि दलोयु लाने उदयावलीकाथी ऊपर वर्तती अन्तमुहून प्रमाण स्थितिओमा निक्षेप करे. [ जे स्थितिनो पात पये लो छे. तेमांपो दलीयु लाने अनन्तानुबन्धिनो उदय न होबाथी उदयालिफा छोटीने प्रतिसमय असंख्यातगुणवृद्धिये रचमा करयी, जो प्रकृतिनो उदय होय तो उदयावलिकाना प्रथम समयथी असंख्यातगुणी रचना थाय छे, इति विशेष: J प्रयमसमयनु महण करेलु दलीयुं में निक्षेप कराय छे, ते थोडे नखाय है, बीजे समय तेयो अग्नरूयेयगुण, पीजे समये तेथी असंख्ययगुण, प प्रमाणे यावत् गुणणिरषनानो घरमसमय
आवे. बीमे समये पण अन्तमुहर्तथी उपरती स्थितिमाथी से इलियु प्रहण क. गयछे ते प्रथमसमयगृहीत दलिया करना असंख्येयगुण जाणयु. अन तेनो पण पूर्वमी माफक निक्षेप जाणवी, पज प्रमाणे श्रीजा विगरे समयोमा पण ग्रहण अने निक्षेपो जाणधा, आ प्रमाणे गुगधेणिर्नु स्वरूप जाणवू.
(५) गुणसंक्रम- अपूर्षकरणना प्रथमसमये अनन्तानुवन्धिकषाय सम्बन्धि में दलीयु परप्रकृतिमा संक्रमाये ते स्तोक छे, तेथो पोजे समये संकमण करात