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३१९] ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा. २३१) (४९९) यथाप्रवृत्तकरणमा संख्येयभाग सुधी जवु त्यारमाद ने संख्येयभागमां आवेळ परमसमयभी जपम्पविशुद्धि करता प्रथम समयनी उत्कृष्टविशुद्धि अनसगुणा. धिक, तेमा करता प्रथम से जघन्यविशुद्धिस्थानफे अटक्यो छे, तेमाची उपरनु मपन्य विशुद्धिस्थानक अनन्तगुणाभिक, सेना करताबीजासमयनु उत्कृष्ट विशुद्धिस्थानक अननगुणाधिक, तेनाथी उपरनु जधम्यविशुद्धिस्थानक अनन्तगुणाधिक, तेनाथी त्रौजा समयनं उत्कृष्टषिशुद्धिस्थाम अनन्तगुणाधिक, पक्ष प्रमाणे ( उपर बतान्या क्रम प्रमाणे ) नघग्य ममे उत्कृष्टम्यानकोने न मुकता अनन्तगुणवृद्धि प्रणिय यावत् यथाप्रवृत्तकरणमा परमसमयनु सर्वान्तिम ( सर्वथी रोषटना ) जघन्यविशतिस्थान सुधी माणयु. स्पारवाद बाकीमा सर्व उत्कृष्टस्थानको अनन्तगुणवृदिये जाणषा यावत् यथाप्रवृत्तकरणमा उपामयसमयमा उत्कृष्ट विशुद्धिम्यान करता घरमसमयनु सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिस्थाम अनन्तगुणधृद्ध होय छे. आ यथाप्रवृत्तकरणमा स्थितिघातादिने योग्य विशुद्धिनो अभाष होापी, स्थितिघास-रसधात-गुणणि अने गुणसंक्रमण करतो नधो. आ प्रमाणे प्रथम यथाप्रवृत्तकरणर्नु स्वरूप जाणवू.
हधे योजु अपूर्वकरण बताथाय छ, आ अपूर्वकरणमा पण दरेक समये असंख्येय लोकाकाशप्रदेश प्रमाण विशुद्विस्थानको छे. अने ते पण दरेक समये परस्पर घटस्थानकपतित होय छ, अपूर्वकरणमा प्रथमसमये अघन्यषिशुद्धि सर्वथी स्तोक छे, ते पण यथाप्रवृत्तकरणमा घरमसमयनी उस्कृष्टविशतिः स्थान करता अनन्तगुण होय जे, तेमा करता पण प्रथमसमयनोज उत्कृष्टविशुद्धि अमन्तगुणाधिक होय छे, तेनाथो वीजा समयनी जघन्यविशुद्धि अनानगुणाधिक, तेथी बीजा समयनीज उत्कृष्ट विशुद्धि अनम्तगुणाधिक प प्रमाणे पूर्वसमयनी उत्कृष्ट विशुद्धि करता आगळमा समयनी अघन्य अने ते करना तेज समयमी उस्कृष्ट एवी अनन्तगुणवृशिवाळी श्रेणिये त्यां सुधो जाणवु यावत् অনুজলা স্বমযী এঘষিতি ব্ৰথায় সমযী ও বিযুক্তি करता अनन्तगुणाधिक अने तेमा करता तेज चरमसमयनी उत्कृष्ट विनिय मन्तगुणाधिक आणबी.मा अपूर्वकरणमा प्रवेश करतो समकामेज स्पितिघातरसघात-गुणश्रेणि गुणसंक्रम अने अपूर्ण स्थितिषाब ए पांचे पदार्थो आरम्भ
(१) स्थितिघात-स्थितिसाकर्म (सत्तागतकर्म)ना आगळमा भागथी जयन्यथी पत्योपाना संख्येयभाग प्रमाण अने उत्कृष्टयी सागरांपम शतपृथक्त्य