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(४९४) || गुणस्थानद्वारे अष्टमा पूर्व करणगुणस्थानस्वरूपवर्णनम् ॥ (बार लोकाकाशना आकाशप्रदेश जेटलां छे, अने बीजा त्रीजादि समयोगां तेथी पप्प अधिक अधिक अध्यवसाय स्थानो होय . ॥८२॥ तेमां पण एक जीवने प्रथम समये जे जघन्य अध्यवसायस्थान के, तेज समये बीजा कोइ जीवने तेथी पण अनंaगुण अधिक निर्मळ उत्कृष्ट अध्यवसायस्थान ( प्रथम समय संबंधि उत्कृष्ट अध्यबसाय स्थान) होय, वली तैनाथी पण अनंतगुण निर्मळ बीजे समये जघन्य अध्यवसायस्थान होय है, एज प्रमाणे (अनन्तगुण विशुद्धिनुं स्वरूप) अन्त्य समय (आउमा अपूकरण गुणस्थानना चरमसमयना उत्कृष्ट अध्यवसायस्थान ) सुधी जामं. बळी मत्येव समयनां अध्यवसायस्थानो परस्पर छ स्थान पतित होय के ॥ ८२-८३-८४ ॥ बळी निश्वयथी आ गुणस्थानने समकाळे अंगीकार करेला(पामेला) घणा भव्य जीवोने पूर्वे कडेला स्वरूपवाळा अध्यवसाय स्थानोनी व्यावृत्ति ( परस्पर फेरफारी) रूप निरृति जे कारणथी परस्पर वर्ते छे, ते कारणथी पंडि तो आने निवृत्ति नामनुं पण गुणस्थान कयुं छे, ।। ८५-८६ ॥ ए प्रमाणे. आठमुं अपूर्वकरण अथवा निवृत्ति नामनुं गुणस्थान करूं ॥ ८ ॥
तथा ॥ परस्पराध्यवसायस्थानव्यावृत्तिलक्षणा । निवृत्तिर्यस्य नास्त्येषोऽनिवृत्त्याख्योऽसुमान् भवेत् ॥ ८७ ॥ तथा किट्टीकृतसूक्ष्मसंपरा यव्यपेक्षया । स्थूलो यस्यास्थ्यसौ स स्याद्वादरसंपरायकः ॥ ८८ ॥ ततः पदद्वयस्यास्य विहिते कर्मधारये । स्यात्सोऽनिवृत्तिवादरसंपरायाभिधस्ततः ॥ ८९ ॥ तस्यानिवृतिवाद संपरायस्य कीर्तितम् । गुणस्थानमनिवृत्तिबादरसंपरायकम् ॥ ९० ॥ अन्तर्मुहूर्त्तमानस्य, यावन्तोऽस्य क्षणाः खलु ।
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विशेष मां कारण छे के मा गुणस्थानपामगार शोषो दरेक समये विशुद्धिकने पाता छता स्वभावथीज उपर उपर चढ़ता जाय ते घणा भने जुदा जुवा अध्यवसाय म्यानोमां घ
१ प्रतिसमयवति जघन्य अध्यवसायस्थानथी उत्कृष्टाध्यवसायस्थान सुधीना सवं परस्पर पदस्थानपतित होयछे, केटलाक अध्यवसायस्थानो अनन्तभागवृद्धिविशुद्धिषाळा होयछे १ केटलाक असंख्यात भागवृद्धि विशुद्धिषाळा होय २ फेट लोक संख्यात भागवृद्ध ३. केटलाक संख्यातगुणवृद्ध ४, केटलाक असंख्यातगुणधूद्र ५ अनेकेटलाक अध्यवसायस्थानी अनन्तगुणवृद्ध विशुद्धिषाला होय छे ६
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