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३.) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २२६) (४९३) समकालं प्रपन्नानां, गुणस्थानमिदं खलु । बहूनां भव्यजीवानां, वर्त्तते यत्परस्परम् ॥८५॥ उक्तरूपाध्यवसायस्थानव्यावृत्तिलक्षणा । निवृत्तिस्तन्निवृत्त्याख्यमप्येतत्कीर्त्यते बुधैः ॥ ८६॥ इत्यष्टमं ।। ८॥ (आठमा गुणस्थाननो भेदविचार)
अ-आ अपूर्वकरण क्षपकापूर्वकरण अने उपशमकापूर्वकरण एम दे पकारना अपूर्वकरण छे; त्यां मोहनीय कर्मनो क्षय अने उपशमने योग्य होवायो से तेवा प्रकारना कहेवाय छे [ अर्थात् मोहनीयना क्षय करनारनी अपेक्षाये क्षपकापूर्वकरण, अने उपशम करनारनी अपेक्षाए उपशमकापूर्वकरण.] ॥ ७८॥ था गुणस्थानवति जीव कोइ पण कर्मने क्षय करतो नयी तेम उपचमावतो पण नधी, नोपण आगल राज्य पामवाने लायक एवो राजकुमार जेम प्रथमयोज राजा कवाय तेम अहिं पण ते प्रमाणे (क्षपक अने उपशमक शब्दथी) कल के ।। ७९ अन्तमुहत प्रमाणवाली अपूर्वकरणनी स्थितिना हेले समयेज आ गुणस्थान पामनारा त्रणे काळना जीवोनी अपेक्षाए जघन्यथी मांडीने उत्कृष्ट सुधीनां अध्यवसायना असंख्य स्थानो होय छे. ॥८०-८१ ॥ अने ने सर्व मली असंख्य
१ आ अपूर्वकरणगुणम्घामना प्रथमसमयपति भूतकालमा प्रतिपक्षमीवो, बर्तमानकालना पतिरपमान जीषो अने भविष्यकालना प्रतिपस्यमान ओषो ए प्र. माणे प्रथमस प्रयवर्ति त्रणे कालना जीवोना अघम्ययी मांडो उत्कृष्टसुधोना अभ्यवसायम्यानो क्षेत्रनी कालनी जीवोनी तरतमताये असंख्यातलोकाकाशप्रदेशममाण जाणवा. फेलिभगते ते ज प्रमाणे देखेल होचायो तेथी ओछा केवधारे होय महि, शंका-भूत-भविष्यकालनी अपेक्षाये आ गुणस्थान पामेला अने पाम ते जीयो तो अमरता छे. तो अध्यवसायस्थानी अनन्ना कम न थाय ? उत्तर-- एक सरखा अध्यवसायस्थानमा अनेकशीषोनु बर्तघापणु हो. बाथी अध्यवसायस्थानोनी संख्या पूर्वे कहेलो ज होयले घली पीने समये ने सोयोना तेनाथो जुदा साने संख्यामां पधारे अध्यषसायस्थामी होयछे, पीने समये तेनार्थी जुदा भने संम्यामां पण तेमायो पधारे. धौथे समये पण तेज प्रमाणे, यज प्रमाणे अम्तर्मुहुर्नस्थितिक भाउमागुणस्थानना यात्रा परमसमय सुधी कहेता अयं सर्वमध्यवसायोनी प्रतितमयनी/000000000 स्थापनाना ५ प्रमाणे म्यापनाकरता विषमतुरबक्षेत्र व्यापे |......... परेकसमयमा अने नाका--प्रथमसमयनां अध्यषसाय-00000000000 ध्यवसायस्थामा स्थामो करता बीजासमयलायीजाकरता 000-000-0००० मा धारी, थ. जीजासमयना धीजाकरता चोथासमयना ---००००००००००. वामां कारण शु! पम यावत अपारस्यसमयकरताबरमसमय 000000000000000| उत्तर- स्वभाव