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३०) ॥श्रीलोकनकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २२६) (१८९) पारोनो सर्वया त्याग करवो ते मोशने आपनार छे, एम जाणतां छतां पण ने जीवने ते (सर्व विरति) नो आदर-ग्रहण करवामां प्रत्याख्यानावरण नामना कपायो विघ्नरूप थाय छे.॥३२॥ एप्रमाणे पांचमु देशविरत गुणस्थान कबु.॥५॥ सर्व सावध व्यापारोयी विरक्त थयेलो पण जे मुनि कषाय-निद्रा-विकयादि (मद अने विषय प सर्व मली पांच) प्रमादोवडे ममाद करे छे. ते मुनि प्रमत्त कहेवाय अने नेनुं गुणस्थान ते प्रमत्तसंयत नामर्नु [ कहेबाय छे भने ते ] प्रयमनां गुण स्थानोथी विशेष विशुद्धिवाळ छे ॥ ६३ ६४॥ अने आगळ कहेवाशे ने (अप्रमनादि) गुणस्थानोथी विशेषहीन विशुद्धिवालं छे, एज प्रमाणे बीजां दरक गुणस्यानोमां पण विशुद्धिनी विशेपना अने हीनना जाणवी. ( प्रथमनी अपेक्षा अधिक विशुद्धि अने आगळनां गुणस्याननी अपेक्षाए विशेष डीन विशुद्धि जाणथी ). ॥६॥ए प्रमाणे छट्टु पमन्नमयत गुणस्थान कायं. ६ निद्रा अने कषायादि (पांचे ) ममाद रहित एवो जे मुनि होय तेने अप्रमत्तसंयत नामर्नु न याय, अनुपयोगी परिणाममा निमित्त जी देशविरतिपरिणामधी पीने अविरतिपाम्या होय अगर सर्वपिरतिपरिणामयी पडोने देशवाति अगर अचिरनिने पाम्या होय नेओ करण कर्या शिवायज देशपिरति के सर्व पिरतिने पामे छे, अने उपयोग सहित पड्या होय अने यावत् उपयोगमाहित मिथ्या गया होय सो जघन्ययो अन्तमुहर्ते अने उस्कृष्टयो किचिम्यूम अधपुनलपरायतें करो ज्यारे देशविरति के सर्वपिरति पामवाना होय स्यारे पूर्वाक करणो करबापूर्वक ज पामी शके, स्पांसुधी देशविरति के सर्वविरतिनी पालना करे हे त्यांसुधी समये समये परिणामी शानि वृद्धिनी सरतमताये गुणनिमी तरतमना होयछे, वर्धमानपरिणामी होय मां पण चतुःस्थामकवृद्धि होयहरे. जेशी गुणजि पण कोइने असंख्येवमागाधिक १, कॉइने सख्येयभागाधिक २, कोने संख्येयगुणाधिक ३, कोने असंख्येषगुणाधिक ४ होयके, डीयमानपरिणामीने पतु म्यानक हामि होवायो गुणणि पण चतु:स्थानशामिवाली होय. अने अवस्थितपरिणामीने अवस्थित गुणणि होय छे.
१ देशविनतना बस्कृष्ट विशुद्रिस्थान करता म विरमनु भयो जयाय विशुद्धिस्थान पण अनन्तगुण विशुद्धिवाळ होय छ की, के.- " उस्कृष्टाशविरते. स्थानासर्वजघन्यकम् । स्थानं तु सर्वविरतेरनन्तगुणतोऽधिकम ॥१॥"
२ वा अप्रमत्तगुणस्थानकमा ऋणकालनी अपेक्षाये सामान्यथी असंख्यातलीकाकाश प्रदेशप्रमाण विशोधिस्थानको होयछे, अप्रमतसयतभगवान ने विशिष्ट तप अभे धर्मभ्यागादिना संबंधथी कर्मों खपायता भने अपूर्व अपूर्व विशोधित स्पामकोमा आरोण करता छता ममापर्यवज्ञानादि अदिओ पण प्रकट थाय