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________________ (२४) ॥ श्रीलोकमकाशे प्रथमः सर्गः ॥ ए प्रमाणे परमाणु चे प्रकारनो छे, स्यां अनंत सूक्ष्मपरमाणुओ मन्त्री ने एक 'च्यावहारिक परमाणु थाय. ॥ ३१॥ ए व्यावहारिक परमाणु पण अति तीक्ष्ण शस्त्रबड़े वे भाग करी शकाय नहि, ए हेतुथी महर्पिओ पने सर्व प्रमाणोमां आदि कारण माने छे. ॥ ३२ ॥ बळी ए परमाणु व्यवहारनयेज परमाणु कहेवाय अने निअयनयथी तो थयेल छ मूक्ष्मपणुं जेने एवो अनंतपरमाणुनो बनेलो सूक्ष्मस्कंध कवायो एमा भर नमहानिक परमाण मलीने एक' 'उत्श्लक्ष्णश्नक्षिणका' थाय' पुनः नेवी आठ उत्श्लक्ष्ण लक्ष्णिका मळीने एक लक्षण लष्णिका' थाय. ए श्री "भगवत्यादि" मृत्रनो अभिप्राय कायो. अने श्री "जीवसमास' मूत्रमा नो-"अनंन परमाणु मळीने एक उल्लक्ष्णश्लक्षिणका, अने अनंत उपलक्ष्ण उत्तलक्ष्णिका मळोने एक उलक्ष्णइलक्षिणका थाय, ए लक्ष्णइलक्ष्णिका तेज व्यावहारिक परमाणु कहेवाय." (पुनः जीवसमासनी वृत्तिकार कहे ले के) “ सिद्धान्तमां अनेक स्थाने आ इलक्ष्णलक्ष्णिकाने उत्दलणश्लक्ष्णिकाधी आठ गुणीज कहेली छे. छनां मा जीवसमास कर्ताए अनंतगणी कोइ स्थानेयो पण लग्बी ? ने केवलिज जाणे" एम' जीवसमासनी वृत्तिमा फयु छे. __ तेवी पाठ लक्ष्णलक्षिणका मळीने एक जवरेणुः जिनेश्वरे कहेलो छे, अने आठ अवरेणुए ! 'त्रसरेणु' कहेलो 2. 11 ३५ ॥ पुनः आठ त्रसरेणु मलीने ? 'स्थरेणु' थाय, अने आठ रथरेणु मलीने देवरु अथवा उत्तरकुरुना बुद्धिथो पण करी शकाय मही, अप्रदेशी छे. पक वर्ण गन्ध रस अने थे स्पर्शवाळो छे, सबथो खाम, अने म स्कन्धान मूळ कारण तेज निश्चयनयथी परमाणु मानेलो हे तेथा अनन्त परमाणुओ पंकठा थाय स्यारे व्यषहार माटे कल्पेली परमाणु कहेशाय जोके तेला पण तोरणशनादियो छेर भेदादि पता नथी तोपण श्रुद्धिथी नेता अनन्ना भागो पाडी शकाय ! अनन्स प्रदेशोछे, तेमा रहेला वर्ण गन्ध रस रादिना अनेक भगो पाडो शकाय छे. (मान्पय) १-२ रण-पटने मुक्ष्म अने श्लक्षिणकापटले अति सूक्ष्म अर्थात् मूकममा रकम अने उतू उपसर्ग अतिशय वाची होवाची उरलक्षणलक्षिणका कषाय, ने लणक्षिणकाथी अति (आठमें भागे ) सक्षम होय हे. ३ महिं वृति काप अनंतगुणपणानो एका तफाषत दर्शाग्यो छे. प. रन पास्तविक रीते थे तफावत पढे छै. 'तेमा प्रथम तफाषत लणक्षिणकाने ( उत्रणश्लक्षिणकाथी) अगतगुणी कहो ते, अन बीमो तफावत लणमष्णिकाने व्यवहार परमाणु मान्यो ते. ___स्वतः वा परपयोग (वायुयोगे) ऊर्य अधोने तिर्यग् गति करनारी रेणु (रज)-(श्री अनुयोगद्वार.) २ पर प्रयोगे (घायुयोग ) गति करमारी रेणु-(श्री अनुयोगद्वार.) ६ रथ चालवाथी उड़ती धूळनो रजकण -(श्री अनुयोगद्वार.)
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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