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॥ औत्सेध(गुल मदर्शनपूर्वक प्रमाणांगुलोपनमः ॥ (२५) युगलीपाओनो एक वाला थाय ॥२६॥ ते (कुरुक्षेत्रना युगली आना वालाप्रयी) आट गुणो हरिवर्ष अने रम्यकक्षेत्रना मनुष्यो ( युगलीआ) नो वालाग्र यी आठगुणो हेमवन्त अने ऐरण्यवन्त क्षेत्रमा युगलीआनो वालाम यापछे॥२६॥
तेथी आटगुणो जाडो क्षेत्रना तथारूप महिमाथी पूर्वमहाविदेह अने पश्चिममहाविवहक्षेत्रमा मनुष्योनो एक बालान कहेलो छे ( आ सर्व स्थले एकज वालामा सूक्ष्म अने जाटापणुं क्षेत्रना ते ते कालना महिमाथी थायछे, जेम आ भरतक्षेत्रमा अवसर्पिणीना प्रथम आरामा तथा उत्सर्पिणीना छहा आरामां कुरुक्षेत्रजेचा भावो होबाथी तेवरखते भरतना मनुष्योनो वाला पण कुरुक्षेत्रना मनुष्यो जेवो न होय पछो अनुकमे घटना बीजे तथा पांचमे आरे हरिवर्ष रम्यक् जेवो. पछी कमे क्रमे कालहानि थतां आगळ बतावातो जाटो कालाग्र थायछे, अने तेज प्रमाणे एरचनक्षेत्रमा पण समजवू. ॥ २८ ॥ तेयी ( विदेहनावालाग्यी) आठमुणो जाडो भरत अथवा एरवनक्षेत्रना मनुष्यनो १ वालाग्र होय, अने सेवा आठ चालान मनोने १ लीख थाप ॥ २९ ॥ ए संग्रहणीनी वृहत्ति सथा प्रपचनसारोबारचि विगेरेनो अभिमाय कयो, अने जम्बूदीपप्रज्ञप्तिसूत्रनी वृत्ति विगेरेमा सो आठ पूर्वपश्चिमविदेहमनुष्यना चालान मळीने १ लीखन प्रमाण थाय एम काही छे. आठ लीखनुं प्रमाण मळीने १ ज़ थाय, आठ जू मळीने ? यवमध्य थाय. अने तेवा आठ यवमध्य मळीने १ उत्सेधागुल थाप. || ३० ।।
चत्वार्योत्सेधांगुलाना, शतान्यायामतो मतम् । तत्सार्द्धचंगुलव्यासं, प्रमाणांगुलमिष्यते ॥ ३१ ॥ प्रमाणं भरतश्चक्री, युगादौ वादिमो जिनः । तदंगुलमिदं यत्तत्, प्रमाणांगुलमुच्यते ॥ ३२॥ यदौत्सेधांगुलैः पंच-धनुःशतसमुच्छितः । आत्मांगुलेन चाद्योऽहैन, विशांगुलशतोन्मितः ॥ ३३॥ ततः षण्णवतिघ्नेषु, धनुः
१ अ दरेक क्षेत्रना मनुष्यमा जे बाजाम का ते जन्मदियमाना यालाय लेषा के बीजी को अषस्थाना लगाते संबंधि स्पष्ट निर्णय नयी तीपण आग. ल पस्योपममी गणत्रीमा मस्तक मुडाव्या बाद सात दिवस सुधीमा वालायन प्रहण कार्य है, ते अनुसार अहिंपण तेघाज घालान गणथान समजाय स्टे.