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________________ पूर्वकोटि आयुष्य औदारिकनुं भोगषभारने. हिमां रही संघात करे तेने जाणवु. ७ तेत्रोश सागरोपम वैकियां रही म्यून शेष पूर्वकोटि संघात परिशादरोभय करो ३३ सागरोपम क्रियमां रही ये समय उत्पन्न बनाने जाणवु ६ पूर्वकोटि आयुष्य वाली एक मंघात समय की एक समय समय पते त्रण समयहीन कथमां संघात परिशाटोभय करी ऋजुगतिये ३-४ एक संघात समयन्यून करवो. ५ वे समय विग्रहना तथा एक संघात ८ संघात परिशाटोभय उत्कृष्ट काल १ समयन्यून ३ पल्योषम १ समग्रहीन ३३ सागरोपम अन्तर्मुहुर्त अनादि अमन्त अनादि अनन्त संघातांतर काल कभत्र "ज० - ३ समयद्दीन शुखउ०- २ समय सहित पूर्व कोटि अधिक ३३ मा ०-१ समय द- वनस्पतिकाल ज० - अन्तर्मुहून उ०- किंचिन्म्यून अर्धगपरावर्त १० परिशातिरकाल ज० - क्षुल्लकभव उ० पूर्वकोटि अधिक ३३ सागरोपम कक्षा - अन्तर्मुहूर्त उ – वनस्पतिकाल ज० - अन्त मुहूर्त - किंचिग्न्यून अर्ध पुगलपरावर्त उ. ११ उभयांतर उभयांतर उत्कृष्टकाल जघन्यकाल १ समय सप्रय अन्यमुहूत ० C ३ मयाधिक ३३ | सागरोपम वनस्पतिकाल किम् अर्ध पुद्गलपरावर्तकाल ० २९) ॥ श्रीलोकाशे वतीयः सर्गः (सा० २१८) (४७३)
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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