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________________ २७८ ॥ श्रीलोकनकाशे हतीयः सर्गः ॥ (सा० २१७) (४६५) सैन्यना-छावणी) विषयक उपयोगनी पेठे अथवा तेज दिवसे जन्मेला नाना बोलफना वधुयी पता बानवत् (अध्यक्तषोधते) चक्षुर्दर्शन जाणधु, अने पोटेन्द्रियादि शेष इन्द्रियोबडे जे सामान्य अर्थनो षोध थाय ते अचक्षुर्दर्शन कहेवाय." जेनावडे अवधिना उपयोगमा सामान्य अर्थ जणाय ते अवषिदर्शन अवधिज्ञानीओने ज होय है ।। ५६ ।। ९ प्रमाणे अम अवधिज्ञानमा अवषिदर्शन होय छे तेम विधजबानमा पण अवधिदर्शन होबार्नु सिद्धान्तमा कहेलं है. ॥ ५७ ॥ तात्पर्य ए छे के-सम्यग्दृष्टिना अवधिशानमा जेवी सामान्य बोधरूपता होय छे. तेवो मिथ्यारष्टिना विमङ्गलाना पण ते सामान्य बोधरूपता होप छ ।।५८। ते माटे पण्डितोए तेने पण अनाकारपणु सरखं होगाथी नामवडे अवधिदर्शनज कहेलं छे, परन्तु विभङ्गदर्शन कहेलुं नथी. ॥५९|| ए सिद्धान्तनो अभिपाप कसो, अने कर्मप्रन्धकारो तो कहे के के-जो के विभाज्ञान साकार अने अवधिदर्शन निराकार होवायी बन्ने मित्र भिम छे. ॥६॥ तोपण मिध्यारूप पणु होवायी विभाशानथी वस्तुनो सम्यक् निश्चय होय नदि, अने अनाफारपणाये करीने (अस्य) विभज्ञानीने थयेला सामान्पाक्योधरूप अवधिदर्शनयी पण वस्तुनो सम्यग निअय यतो नथी ।।६१॥ तेयो आ [विभाजान माटे मानेला] दर्शनने न्दु कद्देवावडे करीने ( फळ १ ), ते हेतुथी कर्मग्रन्थकारोए ए विभाज्ञानीने जदुं दर्शन कईचा इच्छेल नयी ॥६॥ कई छे के-"सिद्धान्तमा विभाज्ञानीने घणे ठेकाणे अवधि दर्शन कडेल छे, परन्तु कर्मपकृति प्रकरणमा ते शा माटे निषेध्यु के ?" इत्पादि अधिक विस्तार विशेषणवती प्रथधी अने पमवणाजीना १८ मा पदनी धृत्तिषी जाणवी. तत्यार्थत्तिकर्ताए पण विभागानमां अवधिदर्शन स्वीकार्यु नपी तेना पाव आ प्रमाणे-"अवधिदर्शनावरणकर्मना क्षयोपशमयी पदार्थना विशेष स्वरूपने प्राण करवामां विमुख एवो जे अवधिरूप बोध ते अवधिदर्शन कडेवाय, अने तेनो स्वामि निश्चययी सम्यग्दृष्टि जीवन होय " केवळज्ञान थपा पाद (पीजे -. -... -- - -- - - - - - तुर्तगा मा मेला शळकना चक्षु उसयतां मधु जुषे स्पारे आ मधु काक में पक्षो मस्पष्ट पोध होय पण दरेक बीजने भिन्न भिन्न गाणी शके ना २ मळो पज तत्वार्थ सूनी बोजा अध्यायनी अवमा सूचनी टीकार्य स्पष्ट करी दीधु छ के-'अवधिदर्शन सम्यग्वष्टेरेव न मिध्यादृष्टे: अवधिरशन सम्यग्दृष्टिने अहोय मिथ्यावृष्टिने नहि, पटके के विमनमानि चक्षुर्वशम अने भानुदर्शन श होय ।
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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