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(द्वार
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॥ दर्शनबार दर्शनभेदविचारः ।। विशेषपणे करीने निर्देश ते (आकार) कहेल छे. अने अन्तर्मुहूर्त का थवाचाळो होवाथी ने (आकार, दर्शन पछी ज थार के. अने आकार विज्ञान यया पहला आलोचन ( "आ कंइफ छे" एवा विचाररूप दर्शन ) ज्ञान तो अवश्य अङ्गीकार फर जोइय, नाहितर "आ कडक छे" एवो अस्पष्ट बोध प्रथमधीज जोनाग्ने क्यांधी होय ! बळी जो आलोचन (दर्शन) विनाज मनुष्यने [जीवने] आकार ज्ञान उत्पनिधी ( प्रथम )ज थाय नी नेम धवाथी पर समय मात्रयां स्तम्भ कुम्भ वगैरे विशेष स्वरूपने ग्रहण करे [ परन्तु ते इष्ट नथी माटे प्रथम आलोचन थया बाद ज आकारज्ञान स्वीकार-इति भावः ] पाजीओने चक्षुबडे जे सामान्य अवोध थाय ने यक्षुर्दर्शन का छे. ने ते चतुरिन्द्रिय जीवोथी मारम्भीने (पञ्चन्द्रिय सुधीना छद्मस्थ जीवोने) होय है ॥५४॥ नथा चक्षु शिवायनी बीजी इन्द्रियोवडे जे सामान्य योच थाय ने अचक्षुदर्शन म (कंवलि शिवाय) जीव मात्रने होय. ॥५५॥ तस्यार्थयत्तिमां कहधु के केचक्षुदर्शन इत्यादि पटले चक्षुबडे जे दर्शन-उपलब्धि-सामान्य अर्थन (भावमुं) ग्रहण ते चक्षुदर्शन, व्युत्पन्न समजदार पुरुषने पण स्कन्धावार ( पराव नारखेला
- - - - - - - ... १ आलोचनाशान "लनण आड़ मर्यादायां आलोचनं दशन परिच्छेदो या सा आलोचना वस्तुसामान्यस्यानिर्देश्यस्य स्वरूपनामजास्यादिवियुतभ्य यः परिछैदः सा आलोचना मर्यादया भवति (सत्यार्थ १ अध्याय) भावार्थ -आइम. यांदा अर्थमा पटले स्वरूप नाम जाति विगेरेथी रहित (अगर रहितस्वरूप मर्यादाये करीने) नियश (अन्यने बतायु) न करी शकाय तेवा बस्तुना सामान्य धर्मनी जे परिच्छेद (घोध) ते आलोचना कहेपाय, अग्य प्रग्योमा पण का ले के-अस्ति शालोधनाज्ञानं, प्रथमं निर्षिकम्पकम् । बाल. मूकादिविज्ञानसदृशं शुद्धधस्तुजं ॥१॥ भावार्थ:-चालक अने मुङ्गा विगैरे जेम पोसाना सामने बीजा पासे बोली शकता नयी नेना शत्रुपदले बोली न शकाय अन शुख वस्तुमात्री अस्पन थपेलु पडेल जे निनिकायकशान से मालोचना सान कषाय
२ अने सेम तो कसातुं नयी पली समय मात्रमा ग्रहण करे तं पण कालि शिवाय समय मात्रमा ग्रहण था शक महि । प पण अभिष्ट दोष प्रसङ्ग यशे (पूर्तिः ।
३ पहाव नाखेला लश्कर पर मजर करतां प्रथम मा लश्कर छपवी सामान्यबोध पाय पण प्रथम समये अस्ति- अश्व--रथ--सुमट-इत्यादि विशेष बोध म धाय.