________________
----
-
-
-
।
(४६०) ॥ बानबारे प्रसङ्गायात पट्रस्थानकनिरुपणम् ॥ (बार तनु स्वरूप नीचे प्रमाणे जाणवू. अहों वृद्धि के प्रकारनी छे. गक भागवृद्धि अने चीजी गुणवृद्धि. तेमांप्रथम भागवृद्धि-पक संख्याने अमुक मरण्याये भाग आपषाथी जे आये ते पधार ते भागवृद्धि कटेषाय देना पण भवी छे, अनन्मभागवृद्धि २ असंख्य भागवृद्धि अने ३ मख्यातभागवृद्धि.
२ तथा बीजी गुणवृद्धि-पक संख्याने 'अमुक मख्याये गुणाकार करवायी जे आधे ने धारवु गुणवृद्धि कहेयाय, से पण त्रण प्रकार छ, मंग्यान गुणवृद्धि. १, अमख्यगुणवृद्धि २, अनन्तगुणवृणि ३.
आश्रण भागवृद्धि अमें त्रण गुण वृद्धि मळीने छ ये वृद्धि, पटस्थानक कडेवाय छे. तेज प्रमाणे हानि ग्धरूपमा पण हानिपमान कोषास रहे. शास्त्रोमा आधत छयेनु स्वरूप नीचे प्रमाणे.
१ अनन्तभागवृद्धि-विधक्षित संख्याने सर्वशीषनो अनन्त मण्याये भाग आपवायी जे आधे नेटलु विवक्षित संख्यामां पधारव ते अनन्तभागवृद्धि कषाय
२. अमन्यभागवृति- विक्षित सलयाने असहय लोका काशना प्रदेश राशिये भाग भाषाथी जे आये नेटलुं विवक्षित सहयामां पधारयु से प्रस सय भागन्ति कवाय,
३ मलयातभागवृद्धि-विधक्षित सचाने उत्कृष्ट संग्याताये भाग आपत्राथो जें आवे मेटल विवक्षित संख्यामां बधारबुं ने सङ्खचातभागवृद्धि, कहेवाय.
४ मलयातगुणवृद्धि-विवक्षित सयाने उत्कृष्ट सङ्ग्याताय गुणाकार करवाथी जे आये तेलु विक्षित मायामां अधार से सशपातगुणवृद्धि कदेवाय.
५ असनशातगुणवृद्धि-विवक्षित समयाने अन लश लोकाकाश प्रदेशग. शिये गुणतां जे माये तेलु विक्षित महशामां बधारच ते अमलगातगुणवृद्धि कवाय.
६ अनन्त गुणवृद्धि भिक्षम मलयाने सजीवनी अनन्त सङ्ग्याये गुणाकार करषाथी में आधे तेरटु विवक्षित सयामां वधारधु ने अनन्तगुणवृद्धि वृशिनास्वरूप प्रमाणे हानिन स्वरूप पण जाणयुं मात्र तेमां हीनकरवान शाण.
आट झानीमा सहभाविदर्शमी नीचे प्रमाणे जाणघा. मतिज्ञान १ पश्च. अचश्नु, अथपा २ च0 अचः अधधि, Vतज्ञान-मति प्रमाणे
अधिज्ञान-१ घ. अच० अब., 11 मनःपर्यायशान-१ चच. अय.. वा ३ च० अधः अवधि || केवलज्ञान- केवलदशन ||
मतिअज्ञान-म.. अच० अने विभङ्ग होय नो पकमते अवधिन पण. धनसान-मनिअमान प्रमाणे विभङ्गमान-मतिअकास प्रमाण