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स्थिति (4)
| अन्तर पा विरहकाल [२] स्वाभि
यि अल्पबन्ध(१८)स्वपर्याय आश्रयि अल्पबहुत्व[११
जधः-अन्तमु
अव०-अन्तर्मुहत उ:-देशोन अध पुरलपराषत
अवधियो विशेषाधिक ३ | मतिअज्ञानथी विशेषाधिक
उ०-६६ सागरांपम
७
: जय -समय
मतिमानी शुल्य [३] अन्तअज्ञानथी विशेषाधिक ५ मनःपर्यत्रीथो असंख्यगुण २ | विभङ्गयो अनन्तगुणा ३
|| अघ-६ समय
१०-८ वर्ष ७ मास म्यून पूर्वकोद वर्ग (देशोनपूचकोटि
सर्वथो अल्प
मर्वयी अल्प
॥ श्रीलोकपकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २१२)
। सादि अनन्त
अन्तराभाद
विमङ्ग यी अनन्तगुण ५ | मतिज्ञानथी अनन्तगुण ८
उ-भव्यने अनादि सान्त अथवा पुनलपरावर्त, अभब्यने नादि अनन्त
अष-अन्तमु० उल-साधिक ६६ सागर
केवलीथी अमरतगुण
६ | श्रवज्ञानयी अनन्तगुण ६
मतिअहानी दुल्या
अवधियी अनन्तगुण
मघा-६ समय सागर जघ०-अन्तमु उ वनस्पतिकाल | जल-देशान पूर्वको वर्वाधिक ३३ | आरन्यमयेयभाग पुलपरावर्त)
मतिझानीयो असंख्यगुण ४ | मनःप० थी अनन्तगुण २
मतिज्ञानना अपमहादि भेदो भयोपशम विचित्रतायी पदस्थान पतित होय छे. अने नयी ने दरेक भेदोना अनन्त प्रकारो चाय छ, हे पटस्थानक पृद्धिप्रकारमा नया हानिप्रकारमा पमधे प्रकारे छ, अ पदस्थानको अन्यत्र पण विशेषोपयोगि होचायो |