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________________ (४४६) ॥ ज्ञानद्वारे साक्षेपपरिहारं मतिज्ञानस्य पर्यायनिरूपणम् ।। द्विार मुखेनोपयुज्यन्ते, तथा परपर्यायसद्भाव एव एते स्वपर्याया इति । विशेषयितुं शक्या इति स्वपर्यायविशेषणेन परपर्याया उपयुज्यन्त इति तात्पर्यम् ॥ ___ अर्थ ज्ञानोना स्व अने पर पर्यायनु स्वरूप-सर्व ज्ञानोना (आठे झानना) पर्याय स्व अने पर भेदथी वे मकारना छे. त्या पोताना धर्मरूप जे पर्यायो ते स्वपर्याय, अने पर अन्यपदार्थना धर्मरूप जे पर्यायो ते परपर्याय फहेवाय ॥१॥ क्षयोपशमना विचित्रपणावडे मतिर्नु पट्स्थान पतितपणुं होवायो मतिज्ञानना अवग्रहादि भेदो निश्चये अनंत भेदवाळा छ॥१४॥त्यां पट्स्थान आ प्रमाणे-अनंतमागवृद्धिअसंख्यभाग वृद्धि-संख्यभाग वृद्धि-संख्येय गुणवृद्धि-असंख्येय गुणपृद्धि अने अनंतगुण वृद्धि र प्रमाणे अहिं ६ स्थान के ॥ १५ ॥ वळी ए अनंतना अनंत मेद, असंख्यना असंख्य भेद, अने संख्यातना संख्याता भेद छे, माटे पनिज्ञानना ते पर्यायो पण सर्व मळी अनंत छ. ।। १६ ॥ अथवा जे कारणधी मतिज्ञान क्षेयनो अपेक्षाए भेटवाळ गणीए तो ज्ञेय अनंत होवायो मतिज्ञानना पर्याय पण अनंत छ. ॥ १७ ॥ अथवा बुद्धि कल्पनावडे निर्विभाज्य अंशोबडे छेद्यु छतुं अनंत खंडवालं ( अनंत भागात्मक )याय ए इतथी पण मतिज्ञानना अनंत पर्याय ( स्वपर्याय ) छे. ॥ १८ ॥ इये जे कारणथी प स्वपर्यापोथी बीजा पदा थैना जे अनंतगुण पर्यायो छे, जे कारणथी ते मतिज्ञानना पर्याय विचारमा उपपोगमा आवे छे तेथी ते ( पदार्थान्तरपर्यायो) पण आ मतिज्ञाननाज पर्यायो (परपर्यायो ) छे. ॥ १० ॥ जो के एमां ( मतिझाना ) ते पर्यायो ( परपर्यायो ) संबंध दिमाना छ तोपण ए मतिज्ञानना उपयोगमा आवता हो म प्रकाशस्थरूप ओळखषामां अन्धकागवि त्यागरूपे उपयोगी धाय छे. तेम स्वपर्यायने ओळखवामां परर्यायो त्यामरूपे उपयोगी पाय छ, तथा "अभावाने प्रतियोगिहानस्य कारणत्वं ए न्यायधी जेम घटाभावहाममा घशान कारण छे तेमज अन्धकागद अग्यपदार्थलु विचमासपणे होय तो ज "आ प्रकाश एषो विशेष ध्यपदेश घडू शके लेम परपर्यायो होय तो ज "आ स्वपर्याय" एको विशेषव्यपदेश था शकै माटे ए प्रमाणे स्वपर्याय प्रत्ये परपर्यायो घे रोते उपयोगी थाय छ, प भावार्थ छे. प गाथाओनी विशेष स्पष्टार्थ पिशेषाचश्यका भाष्यमी ४८२ मे १८. मी गायानी टीकाथो जाणयो. .. मतिनानमा स्वपर्याय अनन्त होषामांत्रण कारण छे. १ क्षयोपशम अनेक अने विषय पक, २ क्षयोप. अने विषय अनेक अने ३ भयोप. पक अने विषय एक होय णे बखते उपयोगर्मा वर्तता अनन्त पर्याय स्वाय (अने उपयोग गोचर ना बयेला पर्याय कडेवाय. )
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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