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(४४२) ॥ज्ञानद्वारे मत्यादिज्ञानानां स्थितिविचारः ॥ द्विार छ के-"विजयादिमा बे यार गपेल अथवा प्रणवार अच्युतमा मयेल जीवोनी अपेक्षाए मनुष्यभव अधिक ६६ सागर जाणवा अने अनेक (वा सर्व) जीवोनी अपेक्षाए सदाकाल स्थितिवाळे (प्रथम ज्ञान युगल छे-इति शेषा)" ॥९८७)। तथा अवधिज्ञाननी उत्कृष्ट स्थिति पण एज (उपर कला प्रमाणे साधिक६६ सागरोपम) कही छे, अने जघन्यथी १ समयनी छे ते आ प्रमाणे कहेवाय छे–ज्यारे विभंगशानी सम्यकृत्व पामे त्यारे तेज समये जे विभंगज्ञान ते अवधिज्ञान थइ जायः॥९८८८९॥ अने बीजेज समये जो मरणादिफवडे ते ज्ञान (अवधिज्ञान) पतित थइ जाय तो पंडितोए ते रखते अवधि ज्ञाननी जघन्य स्थिति (१ समपनी) जाणवी. ॥१९०।। अप्रमाददशामा वर्तता कोइ मुनिने (ऋजुमति) मनापर्यवज्ञान (मथम समये) उत्पन्न थड़ वीजे समये पडी जाय, ।।९९१॥ तो सामनःपर्यशालनी नजन्य स्थिति समयात्मक जाणवी,अने उत्कृष्ट स्थिति देशोनपूर्व फ्रोह वर्ष प्रमाणनी छे ते पण आ प्रमाणे कहेवाय छे. ॥ १९ ॥ पूर्वकोह वर्पना आयुष्यबाळा जीवने दीक्षा अंगीफार कर्या वाद तुर्तज मनःपर्याय ज्ञान उत्पम थाय अने ते आखी जींदगी सुधी रहे तो ( मनःपर्यवज्ञाननी ) ते उत्कृष्ट स्थिति थायः ॥ ९९१ ॥ वली तेमा जघन्य स्थिति ( १ समयनी ) तो ऋजुमति मनोज्ञानीनी अपेक्षाए जाणवी. कारण के बोर्जु ( विपुलमति मनोज्ञान ) तो अप्रतिपाति होवाथी केवळज्ञान पामना सुधी स्थिर रहे छे. ॥ ९९२ ॥ केवळज्ञाननी स्थिति तो प्रथम सादि अनंत कहेलीज छे. हवे मति अज्ञान-श्रुत अज्ञाननी स्थिति त्रण प्रकारनी के (ने आ प्रमाणे) ॥ ९९३-२५ ॥ त्यां अभव्य जीवोने आश्रयि (मतिश्रुत अज्ञाननी स्थिति) अनादि अनंत छ, अने भव्यजीवोनी अपेक्षाप अनादि-सान्त अने वीजी सादि-सान्त
एम चे प्रकारनी छे तेमां पहेली अनादि सान्त स्थिति अनादिकालनुं अज्ञान मटीने (सम्यक्त्व माप्ति समये) ज्ञान थवाना संभव होवाथी छ, ।।२.९६ ॥ अने बीजी सादि-सान्त स्थिति पुन: जपन्य अने उत्कृष्टना भेदधी वे मकारनी छे, त्यां जघन्य मादि सान्त स्थिति (बे अज्ञाननी) अन्तर्मुहूर्तनी छे ते आ प्रमाणे विचाराय छ९९७॥ सम्यक्त्वयी पतित थपेका जीवने पूनः अन्तर्मुहत वाद सम्यकत्वनी प्राप्ति थये ये अज्ञाननी जघन्य स्थिति (अन्तर्मु. प्रमाण) यार छे ॥ ९९८ ॥ अने उत्कृष्ट स्थिनि काळयी अनंतकाळचक्र जेटली, अने क्षेत्रंथी ते उत्कृष्ट स्थिति कंइक न्यून ०॥ अर्ध पुदलपरावत जाणवी. १९९५।। तेनी भावना आ प्रमाणे-सम्यक्त्वधी
। न्यादि चार प्रकारनां पुनल पराधमां अहिं क्षेत्र पुन र परावर्त में