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________________ ॥ मालाचरणविवेचनम् ॥ तपस्याओ करी इती जेधी भक्तिभरदये सन्तुष्टवदनथी तपानामे बोलाववाथी 'ना' नामे प्रख्यातिपाम्यो, कह्यु के के--"निर्गन्ध' १ श्रीसुधर्माभिधगणधरतः "कोटिकः" २ सुस्थितार्या "चन्द्रः" ३ श्रीचन्द्रसूरेस्तदनु च " वनवासी"ति। सामन्तभद्रान् ॥ सूरेः श्रीसर्वरेषाद् " यर " गण ५ इति यः श्री जगश्चन्द्रहरेविश्व ख्यात " स्तराख्यो " ६ जगति विजयतामेप गम्छो गरीमान् ॥१॥ तेज तपागन्द्रमा अठ्ठावनमा पट्टधर श्रीमान् 'हीरविजयसूरीश्वरजी' थया, जेमना अप्रतिमगुण सौरभ्यनी यासनामां लुब्ध बनेला अकबर भूपाले भक्तिगौरवधी आमत्रणफरी उपदेशामृतर्नु पानकरी प्रतिवर्ष छमास जेटला दियसोमां अमारि उदघोषणाना परवाना करी आएषा साथे "जगद्गुरूनुं विरम् अप्यु हुनु, सेमज म्वेताम्बर प्राचीन जैन तीर्थो "श्रीसिद्धगिरिजी-समेतशिखर गिरनार-नागा-अर्बुदगिरि (आनु)-राजगृहना पंचपाहाड केशरीगाजी आदितीयोंना जन्मसिद्ध कायमी) हकोना पण परवाना करी आल्या हता जे अन्य ग्रन्थो तेमज न्यायालयोमा घणाज सुप्रसिद्ध के. श्रीमान् हीरविजयसरिजी एक महान् प्रतापी. प्रभावक अने प्रतिभा. शालि आचार्य थाया, ए तो निर्दियाद छे ले संबंधमां अन्य ऐतिहासिक प्रन्यो पण साबीती आपी रह्या छे. ! ! ! (६) उपरना "लोकमां पोताना पितामहगुरु (दादा गुरु, गुरुना गुरु) श्रीहीरविजयमूरि महाराजश्रीनु स्तुल्यात्मक मंगल कयु. हवं पोताना गुरु के जेमने भाधीन तमाम शास्त्रारंभो रहेला छे. 'गुर्वायत्ता यस्मा-छात्रारंभा भवन्ति सर्वेऽपि.' पोताना सर्वधार्मिक जीवनना परमआधार, महोपाध्याय 'श्रीकीर्तिविजयजी' रूप अधिकृत देवतार्नु मंगलज जाणे अनित करना होय नहीं तेम आलंकारिक भापाथी अपूर्वमंत्रना रूपकमां स्तवना करे छे. श्रीकीर्तिविजयान्सूते, श्रीकीर्तिविजयाभिधः । शतकृत्वोऽनुभूतोऽयं, मन्त्रः स्तादिष्टसिद्धिदः ॥७॥ शब्दार्थ:-जे 'श्रीकीर्तिविजय नामनी मंत्र ज्ञानादिलक्ष्मी अथवा शोभा, कीर्ति (गुणपसिद्धि) अने विजयने जन्म आपे छे. सेंकडो वरवत ( आराधीने) अनुभवेलो आ मन्त्र इष्टसिद्धि आपनारो थाओ.। ७ ॥ विवेचन-आ श्लोकपी पोताना गुरुवर्य प्रत्येनी अप्रतिमभक्ति साबीत करी बतावे छे. महापुरुषो आ युगमा गुरुमहाराजने साक्षात् देवरूप वर्णवे छे. ज्यारे जगत्प्रकाश सूर्य 'भानु' शम्दयो धोलाय छे. न्यारे राधिना अन्ध १ गुणश्रेणिमणिसिंधीः, श्रोहीरविजयप्रभोः । जगद्गुरुरिद तेन, बिरुदं प्रददे तदा ॥ १॥ (होरसौभाग्यकाव्य.)
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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