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(४२६) ॥ ज्ञानहार ज्ञानानांप्रमाणस्वरूपनानिरूपणम् ॥ [बार रेनो अभिप्राय कयो. अने रन्नाकरायतारिकादिकमां तो मतिज्ञानने अने " तेना अवग्रहादि भेदीने सांव्यवहारिक प्रत्यक्षममाणता कहेली ले तेनो पाठ आ प्रमा
-"अयग्रह-इहा-अपाय-ने धारणा ए चारवडे मेद एटले विशेष ले,तेथी प्रत्येक [ भेदव.] इन्द्रिय अने मनना कारणवाळु प्रत्यक्ष प्रमाण चार प्रकारनुं छे". परीने श्रुनज्ञानां पण अपायांश ने ममाण छे, ए प्रमाणे ( इन्द्रिय अने मन रूप निमित्तनी) अपेक्षावाळा होवाथी ए वन्ने [ मति-श्रुत ] ज्ञान परोक्षपमाण रूप कहेला छे. ॥ १५२ ॥ जेम लोकमां धूमज्ञानना निमित्तवाळ (धूमना निमित्तथी थत) अग्निन ज्ञान (अनुमिति) निश्चयथी परोक्ष कवाय छे. तेम इन्द्रिय अने मनना निमित्तवानां प चे ज्ञान पण [ परोक्ष ] जाणवां. ॥५३॥ ए ( प्रत्यक्षपणु ने परीक्षपणं । निश्चय नयनी अपेक्षाए का छे, नाहितर व्यवहारथी नो ए बन्ने ज्ञानमा प्रत्यक्षपणानो पण व्यपदेश थाय छे. ॥५४॥ श्री नन्दीसूत्रमा कयुं छे के "ते (मत्यक्षज्ञान) संक्षेपथी वे प्रकार, कहेलं हे-इन्द्रियप्रत्यक्ष. अने नोइन्द्रिय मन्यक्ष". शहा-कपिलमतवाळा (सांख्य) प्रत्यक्ष-अनुमान-अने आगम ५ प्रण प्रमाण कहे छे. नैयायिक मतवाला ते त्रण ने उपमान सहित चार प्रमाण को ले, . ॥१५५।। मीमांसकदर्शनाळा अर्धापनि अने अभाव सहित ६ प्रमाण कहे छे, वशेषिकमतवाळा प्रयमनां बे अथवा त्रण (मत्यः-अनु० अथवा प्र०-अनु०-ने आगम ) प्रमाण माने छ, अने बौद्धमतवाला प्रथमना ये (म०-अनु०) प्रमाण माने छे ॥१५६।। ककी नास्मिकमनवाळा हेलु एक (प्रत्यक्ष) प्रमाण ज माने छे, एम दरेक दर्शनवाला अनेक प्रकारे माने में तो ने अन्यदर्शनीओए कहेला प्रमाणो ने प्रमाण कवाय के अप्रमाण कडेवाय ।।२०उत्तर-एसर्व प्रमाणो इन्द्रियअने अर्थना सनिकरूपनिमित्तपणा बडे (इन्द्रियसाथै विषयन संबंध थर्बु अथवा समोपनि पणुं एज ज्ञान- निमित्त होवाथी) हेला बे ज्ञानमा अन्तर्गत थाय छे. ॥१.८ ।। अथवा मिथ्यात्वना सम्बन्धथी उन्मत्त थयेला पुरुषना प्रलापवन म
इन्द्रियोद्वारा पदार्थनी साक्षान उपलनिध ते इन्द्रिय प्रत्यक्ष, अने मनवड़े पदार्यानी चिन्तना अथवा म्घानादि तं नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष.
२ मीमांमधमतमा प्रभाकर मतानुयायि भट्टमतानुयायि बिगरे भको छै तैमा प्रभाकर मतानुशायि अभाबने म्यान बुद्धिने मानता होयार्थी अभाव यमाणा मानला. थी अने भट्टमनानुयायि अभाव महित छ प्रमाण माने . कश्च द्र के-'गुम धियमभावस्य म्यानस्थ ने ऽभिषिक्तयान | प्रसिद्ध पर्व लोकेऽस्मिन्बुजवन्धु प्रभा करः॥ ३ केटमाक पौराणिक विगरे मंभव-अनि विगरे प्रमाणों पण माने रहे.