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॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० १८५
('४०५)
चितव्यो छे ते सोनानो मथुरा नगरीयां बनेलो, आटला काळो, आजनो बनेलो, पीळा वर्णवाको अने सारी आकृति ॥ २५३ ॥ एस मनना विशेष ज्ञानमां जे मुनिनी यति निपुण होय ते मुनि विपुलमतिमन पर्याय लब्धिवा को कहेवाय ।। ८५४ ॥ शङ्का – अवधिज्ञान अने मन:पर्ययज्ञान बन्ने इन्द्रिय विनानां अने रूपी द्रव्यना पियबाळा छे तो अहिं ए वे ज्ञानमां तफावत शुं ? ।। ८५५ || उत्तर- अवधिज्ञान उत्कृष्थी सबै लोकाकाशने जाणनारी छे भने तेना स्वामि विरतिवंत अने अविरत तिर्यश्व अने मनुष्यो (उपलक्षणो देवादि) पण कल छे || ८५६ ॥ चली बीजुं मनःपर्यायज्ञान घणा पर्यायाने जाणनार होवाथी ते अवधिज्ञानी अधिक निर्मळ, अप्रमत्तयतिनंज प्राप्त थनाएँ, अने मनुष्यक्षेत्र जेटला विषयवा के || ८५७ ॥ तत्वार्थ माध्यमां कहां छे के "विशुद्धि क्षेत्र - स्वामि- अने विषय - ए चारवडे अवधि अने मनःपर्यायनो तफावत छे” शङ्काजो पहेलं ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान सामान्य अर्थ ग्रहण करनार छे तो ते सामान्य ग्रहणात्मक दर्शन केम न होइ शके ? || ८५८ ॥ उत्तर-ऋजुमति मनोज्ञान निश्चय एक वा ऋण विशेष धर्म ग्रहण करे छे. कारण के ए ज्ञान घणा विशेष धर्मों जाणखाने शक्तिमान नथी || ८६९ ॥ माटे ए ऋजुमतिज्ञान थोडा विशेष धर्मने ग्रहण करनार होवाथी सामान्यमाही कहेवाय छे, कारण के अहिं "सामान्य" ए - दनों अर्थ अप के पण दर्शनवाचक ( सामान्यबोधवाचक ) नयी. । ८६० ॥ तथा कर्मना क्षयोपशमधी उत्पन्न थगेल विपुल मतिज्ञानी उत्कुष्टधी घणा विशेष धर्मो जाम अहिं "विपुल" शब्दनी अर्थ बहु वाचक जाणवो ॥८६५ ॥ बळी सिद्धान्नमां कोइपण स्थाने ए मनःपर्यायज्ञाननुं दर्शन कर्तुं नथी माटे ए बले भेद दर्शनरूप सामान्य ग्राहिपणुं नयी. ॥। ८६२ ॥ शंका- ए प्रमाणे ए बन्ने मनोज्ञानना विषयमा विशेषरूपग्राहिपणुं प्राप्त भये छते वे मे पाडवा कारण हैं ? ।। ८ ६३ ॥ उत्तर- घटादि पदार्थना त्रिपया व्हेलं (ऋजुमति ) मनं: ० ज्ञान अल्पपर्यायोने जाना ले, अने वीजुं (त्रिषुलमिति ) मनः० ज्ञान अनेक प्रकारना विशेषधर्मोने जाणेनारुं अने अधिक शुद्ध के. ॥। ८६४ ॥ तथा हेले (ऋजुमति) मनोज्ञान कोइकने
१ अवधिज्ञान विशुद्धिम अप क्षेत्री असूलना असम्यानमा मधी आरंभी संपूर्ण लोकप्रमाण २, स्वामियों देव नारक - गर्भजपर्यनितियेच पंच - अने गर्भज मनुष्य ३, भने । विषयेथी- पीयमान ४, अने ज्ञान तो विशुद्धिम अधिक थी शादी प्रमाण २, स्वामि अप्रमयति अने विषयी मनपणे परिमेला पुलों जाणे ४, ५ प्रमाणे मां बार यांनी तपासले.
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