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________________ (१६) ॥ श्रीलोकप्रकाशे पथमः सर्गः ॥ अने सर्व पदार्थोनी पर्यायोने प्रकाश करनारा, श्रीपाचमभुना चरणना नखो रक्षण करनारा थाओ. (३) विवेचन-ग्रन्थनी समाप्ति पदार्थ ज्ञानना अभावमा मात्र मंगलाचरणश्रीज था शकली नधी, तेम पदार्थशान होय पण प्रन्यरचनाना उद्यममा प्रमाद रोग प्रभृति अनेक विनो उपस्थित थमा होय तोपण अन्य समाप्ति थवी दुःशक छे. तेमज रक्षण थर्बु चे प्रकारे छ, उपद्रव नाश थवाथी, अने र षस्तुनो योग मळवावी. में तमाम प्रकारोमां सर्वाशे श्रीपार्श्वप्रभु समर्थ होय नेमां तो नवाइन शो! पण समना एक अंगोपांग अवयवरूप नस्यो पण समर्थ छ, ते आ श्लोकमां श्रीमान उपाध्यायजी महाराजे सूचन कर्यु छे, यद्यपि सर्व तीर्थकर भगवंतो सर्वातिशय संपूर्ण छे. तथापि श्रीपाश्वनाथ प्रभुनो तो कोई अलौकिक अनिर्याच्य महिमा, पुण्य प्राग्भार के के. सर्व मांगलिक कायोमा तेमनी स्तुतिने आवश्यक कर्तव्य तरीके गणेली के. साधुओ विहार करी जे वसतिमां पधार्या होय त्यां, तेमज पाक्षिकचतुर्दशी, बानुर्मासिक, मांवत्सरिक पाना अगाउ दियसे देवसिक प्रतिक्रमणमां श्रीपार्श्वप्रभुर्नु स्तोत्र (चैत्यवन्दन) स्तवे छे. प्रतिष्ठा विधिको प्रतिष्ठा, प्रवेश, अटोत्तरी, शान्ति। स्नानादि मांगलिक महोत्सबोमां पण 'श्रीजीगउली (पल्ली) पार्श्वनाथना' मंगलनामरूप मंधस्मरण उपयोग वारंवार करे छे. दुष्प व्यन्तर देवोये करेला उपद्रवोर्नु महापुरुषोये रचेला श्रीपार्श्वप्रभुना स्तोत्र स्मरणा निवारण थयेर्छ सुप्रसिद्ध छे. मूळसूत्रोमां संधोधेलं श्रीपाचप्रभुतुं 'पुरिसादाणीये विशेषण निरुपम पुण्यातिशय साधीन करे छ, थीपालप्रभुना विनविनाशकन्च गुण विगेरे संयं. धमा अनेक विचारो छ, जे अहीं द्रव्यानुयोगनो प्रन्थ होवाथी संक्षेपबा पडे छे, पण एटल तो निर्विवाद छेके भीगार्श्वग्रभुना मंगलथी प्रारब्ध कार्य निविप्न पूर्णता पामे छे. पज कारण इएकार्यना प्रारंभमां अनेक महापुरुषोये श्रीपाचप्रभुनु स्मरण करेलु ठामोठाम देखाय छे. ( ३ ) श्री बारवेश्वर पार्थप्रभु रूप अभीष्ट देव के जेममुं त्रिविध मंगलाचरण उपग्ना त्रण श्लोकमां वर्णववामां आव्यु ! ! हवे जेना उपकारयी अन्धरचनानुकूल पदार्थबोध थयो छे, ते श्री तीर्थकर प्रभुनी वाणी (आगम)नुं 'तुलादण्डमध्यग्रहण' न्याये त्रिविध मंगलो पैकी आशी स्वरूप मध्य भंगल वर्णवे छे. जयन्ति व्यजिताशेष-वस्तवोऽन्तस्तमोगुहः ।। गिरः सुधाकिरस्तीर्थ-कृतामद्भुतदीपिकाः ॥ ४ ॥ शब्दार्थ-प्रगट करायेल (प्रकाशित) छे सर्व पदार्थां जेनायी, अने अ
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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