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________________ ।। मङ्गलाचरणविवेचनम् ॥ ॥ द्वितीयमंगलाचरणम || पिपति सर्वदा सर्व-कामितानि स्मृतोऽपि यः ॥ स कल्पद्रुमजित्पाों , भूयात्प्राणिप्रियङ्करः ॥ २ ॥ शब्दार्थ-जे श्रीशंखेश्वर पार्श्वप्रभु स्मरण कराया छतां पण सर्व काले सर्व माणिओना सर्व इष्टपदार्थोंने पूर्ण कर छे, कल्पक्षने पण (स्त्रमहिमाये करी) जीतनारा ते श्रीपार्श्वनाथप जन्तुओ, अभीष्ट करनारा थाओ. (१) विवेचन-जेनुं आगळ वर्णन करवामां आवशे, ते कल्पवृक्षो दश प्रकारना छे. भने ते बरेक नियत हिकफल अमुफ ज क्षेत्रमा अने अमुक ज कालमा तेनी निकट आवेला आराधक अमुक ज जीधोने ( मनुष्योने) आपे छे, ज्यारे शंखेश्वर पार्श्वनाथ महाराज स्मरण मात्रमा जइह परभव संबंधी वांछित एकान्त हितरूप फळ सर्व क्षेत्रमा सर्वकाले तेमज सर्व जीयोने आपनारा छे. जो के श्रीपाश्चप्रभु कोनु प्रियाणिसकरनार नथी तो पण से प्रभ- स्मरण करवाथी थयेली भक्तजीवनी शुभचित्तवृत्ति अथवा से पाचप्रभुना शासमना घिनविदारक तथा शासनरक्षक नागकुमाराधिपति धरणेन्द्र के अणे पूर्यभषना पोतामत्येना असीम-अमोघ उपकारनुं स्मरण करी कृतज्ञभावथी कमटे करेला श्रीपाचप्रभुना उपसगी दूर फर्या हता, ते धरणेन्द्र अधया पार्श्वयक्ष पण जेमना स्तोत्र, मंत्र, नामोना स्मरणधी सन्तुष्ट चित्तवाळा थर आज पण भक्तजीवोना कमोनो नाश करवा साथे वांछित वस्तुओ पूर्ण करे छे. क' पण के. के. "श्रीपार्श्वस्तोत्रमंत्राख्या स्मरणानुएमानसः ॥ अद्यापि शमयन्कटमिष्टानि वितरत्यसी ॥ १ ॥" (२) सर्वन सर्वथा हितकरवापणुं विन विघातकन्च अने सर्व पदार्थ मानना अभावे यइ शके नही जेथी उपमा सहित निरुपम अवयव वर्णनद्वारा विघ्न वियातकत्व गुण बताववा पूर्वक पर्नु सर्व पदार्थ विषयक ज्ञान निरूपण करता 'स्वरूप संकीतन' नामक चरम मंगलभेदरूय श्री शंखेश्वर पार्भमसुनुं मंगलाचरण करे छे. ॥ तृतीयमंगलाचरणम् ॥ पाचक्रमनखाः पान्तु दीप्रदीपाकुरत्विषः ॥ प्लुष्टप्रत्यूहशलभाः, सर्वभावावभासिनः ॥ ३ ॥ शब्दार्थ-चळकता दीवानी फळी सरखी कान्तिवाला, बळी गयां छ. (वा बाळ्या छ) विनस्वरूप पतंगीथाओ जेमा (जेनाथी, वा जेणे), सर्व पदार्थों
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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