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________________ २६ ॥ श्रीलोकनकाशे तृतीयः सर्गः ॥ (सा० १८१) (४०१) तुरिहोदितः ।। ८५१ ॥ इत्यवधिज्ञानम् ॥ ॥ अथ अवधिज्ञाननुं स्वरूप ॥ अर्थ-अवधान एटले पदार्थनो आत्मसाक्षात निश्चय ते अधि, अथवा अब ए अध्यय पद अधः-नीचे अर्थन वाचक छे ।। ८३५॥ तेथी जेनावडे ( एनावडे ) अधो अधो पटले नीचे नीचे वस्तु अधिक अधिक विस्तार घीयतजणाय माटे अवधि, अथवा अवधि शब्द मर्यादावाचक के ( अवधि एटले मर्यादा) ८३६॥ अने ते मर्यादा रूपी द्रव्योने विषे प्रवृत्तिरूप जाणवी,पण अरूपी द्रव्योमां नहि ते मर्यादित प्रवृत्तिवडे ओळखायलं जे ज्ञान ते अवधिज्ञान कवाय / अनामी-अनगुमानी-वर्षमान-हीयमान पतिपाति-अने अप्रति पाति ए रीते अवधिज्ञान छ प्रकारनुं छे ॥८३८॥ जे अवधिज्ञान परदेशमां गयेला (जे क्षेत्रे अवधि उत्पन्न थर्य होय ते क्षेत्रथी बीजा क्षेत्रमा रहला) ने पण पाछळ पाछळ आवे ते अनुगामि अवधिज्ञान कडेवाय, अने ते पोताना मेत्र सरखं [ नेत्र जेम साथेन होय छे ते जाणवं ।। ८३९ ॥ तथा जे अवधि जे क्षेत्रमा उत्पन्न थयुं होय ते क्षेत्रमाण ( रहेला पदार्थोंने ) बोध करनारं होय ने बीजूं अननुगामी अवधि कहेवाय, अने ते सांकळे बधिला दीवासरखं जाणवू ।। ८४७ ॥ जे अवधि पथम अंगुलनो असंख्यातमी भाग इत्यादि ( अल्पक्षेत्रना) विषयवाळं उत्पन्न थइने त्यारवाद ( प्रतिसमय ) विपयना विस्तारे ( द्रव्य-क्षेत्र -काळ-अने भावथी) वयतुं जाय ।। ८४१ ॥ अने स्यां मुधी वर्ष के अलोकमां लोक प्रमाण जेवढा असंन्यात खंडो (असंख्य लोक जेवई क्षेत्र) ने प्रकाश फरवा समर्थ होय ने वर्द्धमान अवधिज्ञान कहेलं छे ॥ ८४२ ।। (जे अवधिशान प्रथम अधिक प्रमाणमां उत्पन थइ ) अशुभ अध्यवसायथी पनिसमय घटत जाय ते अवधिज्ञानने मुनीश्वरोए हीयमान कहेलं छे ।। ८४३ ॥ एमां वर्षमान अवधिज्ञान मंको लाकडांना ढगलामां वळना अग्नि सर, अने हीयमान अव० अल्प अने लीलां लाकडामा बळता अग्नि सरखं [घणां लाकडा बळीने थोडां रहेला होय ने ते पण लीला होय तो ते अग्नि धीरे धीरे ओछी दळतो बिलकुल बुझाइ जाय तेवू ] होय छे ।। ८४४ ॥ हजारो योजन-संख्यानयोजन असंख्यात योजन यावत् संपूर्ण लोकने पण देखीने जे पड़े वे प्रतिपाति अवधि १ क्षेत्रमो अपेक्षाप पमानिकादि देषीमा उपर उपरना देवने नीचे अ. धिक अधिक अपधिज्ञान के माद, अथवा काटनी अपेक्षाप अधिज्ञान जेम जेम अधिक कार्नु होय नेम तेम बधारे पधारे जाणे मादे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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