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|| ज्ञानद्वारेश्रुतज्ञानस्वरूपनिरूपणम् ॥
द्वार]
र्मिकी बुद्धि कहेवाय. अने ते बुद्धि केटलाएक चितारा वगेरे कारिगरांमां देखाय छे जेम डोशीयार चितारो रूप चितरवानो भूमिनुं माप कर्या शिवाय पण आटला मापनुं रूप थशे तेम जाणे छे. पोंछी उपर तेटलोज रङ्ग ल्ये छे के जेटलानुं प्रयोजन होय ते विगेरे कार्मिकी बुद्धि जाणवी ॥७५६॥ तथा घणा दीर्घकाळ सुधी पूर्वापर विचारादि कर्याधी उत्पन्न थयेलो जे आत्मधर्म ( आत्मस्वभाव ) ते अहिं परिणाम कहेवाय, अने ते परिणामथी जे उत्पन्न थयेली ॥ ७५७ || अनुमान तथा हेतुमात्रा (साध्यस्यान्तः वडे साध्य पदार्थने सिद्ध करवावाळी, वचना परिपाकथी पुष्ट थयेली तथा भविष्यमां सुख अने मोक्ष आपनारी ॥ ७५८ ॥ जे बुद्धि अभयकुमारादिकना सरखी होय ते चोथी पारिणामिकी बुद्धि जाणवी, ( जैम अभयकुमारे चण्डप्रद्योत राजा पासेयी चार बढ़ान
पारिणामिकी बुद्धिना सम्बन्धमां दृष्टान्त बतावे छे एक कुमार ने मोदक (लाडवा) घणा प्रिय छे से पहेली उमरमां को वखत गुणनीमां बीओ विगेरेनी साथै जमा गयो श्यां इच्छा प्रमाणे मोदको खाता अजीर्ण थयाथी अतिशय दुर्ग
या अघोषात छुटवाची विचारणा लाग्यो के अहो धिक्कार छे आ शीरंगे के जेना सम्बन्धयी सुन्दर अनं मनोहर एका पण लोट घो साकर विगेरे ग्रथ्यो खरात्र गन्धवाळा थया, आ अशुचि शरीरमें विकार एडी तेना मोइने पण विकार पढो के जे आ शरीरने माटे प्राणीओ पापारम्भ करे छे. इत्यात्रि स्वरूपत्राळी परिणामिकीबुद्धि यह एम उत्तरोत्तर शुभ शुभतर अध्यक्षला यना प्रभावश्री अन्तर्मुहुर्ते ते कुमारने केवलज्ञानी उत्पत्ति यह आ विगेरे अनेक दुष्ट.
१. तात्पर्य पछे के मनुष्य प्रेम प्रेम काम करतो जाय तेममते काममां तेनी वधु ने वधु बुद्धि खीलती आय ५ कामना अभ्यासथी [वीलेली बुद्धि कार्मिकी कवाय.
२ मनुष्य जेम प्रेम भोटो यतो जाय छे सेम तेम उम्मरमा प्रमाणमां sant अनुभव रूप बुद्धि पारिणामिकी काय तात्पर्य छे.
कोई ठेकाणे वृष्टान्त बिना पण अन्यथानुपपत्तिरूप हेतुधदे साध्यसिद्धि थाय छे, तेथी अहीं मात्र शब्द मुक्यो छे अनुमान अंन हेतु ए ऐ शब्द मुकेला दोषाथी प्रथम अनुमान शब्दे स्वार्थानुमान सेतुं भने हेतु शब्दयो परार्थानुमान लेखूं,