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________________ २६] ॥ लोकमफाशे तृतीयः सर्गः (सा. १६०) (३८१) याध्या छ, बैनयिकी बुद्धिन स्वरूप. "भरनित्थरणसमत्या, तिबग्गसुतन्य गहियपेयाला ॥ उभओ लोगफलषर, विषयसमुत्था हवा युद्धी ॥॥"भाषार्थःअति मारे कार्यनो पार पमाडवामा समर्थ धर्म अर्थ अने काम प ण वर्गना अपार्जनना उपायमून मन्त्र तथा अर्थनो सार ग्रहण करनारी उभयलोकमा फलने आपनारी अने पिनययी उरपल थपेल पेनयिकोबुद्धि कडेवाय छे. प्रत्र-त्रिवर्गमा सघार्थना सार प्रहपा करयापर्ण श्रुतहानमा अभ्यास विना बनी शके नाहि तो आ बुद्धि अभुत्तमिश्रित केवी रोते कडेवाय १ उत्तर-स्वरूप श्रुतमान होवा छत्ता पण बहुलतावृत्तिने आश्रयो अक्षतनिमितपणु जाणवू. कार्मिको तथा पारिणामिकी बुजिना उदाहरणोमां खितारों तथा अभ. यकुमारना दृष्टान्तो प्रग्थकारे साक्षात् बताख्या छ, छतां ते अतिप्रसिद्ध तथा अभयकुमार वृत्तान्त घणु विस्तीर्ण होवायी बीजा शन्तो लोकोपकारार्थ बनावायले. एक चोर कोइक पणिकमा घरमां राधियै कमळना आकारे खानर (वांकु) खोधु (पायु) स्यारबाद सपारमा अजाण्यो थइने तेज घरमा आधीने लोकोथी थती लातर (बाई) भी प्रशंमा सामळे छ. तेमां एक ग्घहुत बोल्यो, भणेलाने से दुष्कर छ जेणे जे क्रियाना अभ्यास कों हे ते ने कियानी उत्कृष्ट दशाने पामे मां का आश्चर्य नथी, पामलने प्रदीत करषा सरखं खेडुतर्नु पञ्चन सांभळी ते घोर क्रोधषी बलवा लाग्यो, कोइ पुरुषने आ कोण छ अने कोनो सम्बन्धी छ ? विगेरे तेनु स्वरूप पूछी पक दिषस छरी ला ने तेनी पांसे खेतरमा गयो, अरे तने जमणांज भारी नाखु छु. नेणे का शो हेतु ? चोरे कंधु ते दिवसे ते' मारा खातरनी प्रशंसा न करी माटे, खेत मोम्यो प तो मार्नु छ के में पुरुष ने क्रियामां निरन्तर अभ्यासपरायण होय ते पुरुष ते क्रियामा अधिकतावाको थाय छ, लेमां हुं पोतेज पृष्टान्तरूप छु, आ मारा हाथमा रहेला मगने तुं जो कहे तो वधाने अधोमुरखे अगषा ऊर्ध्वमुखे अथवा पडखाभर नाखु ! अतिषिस्मय पामेलो चोर मौल्यो बधा मग अधोमुखे नांख्य, जमीन उपर लुगडं पायु सधैं मगना वाणा अधोमुखे नांख्या चोरने घणो विस्मय थयो, पारंवार गरी कुशलताने पखाणवा लाग्यो अहो आश्चर्यकारी कलाविज्ञान छे! 1 1 षळी चोरे का जो अधोमुखे न नांग्या होत तो निधये हु तने मारी नाखत | अही खेडुतनी वाणा नलिवानी कुशळता भने चौरमी खातर (याकू) पडवानी कुशलता प कर्मजा बुद्धि . आ विगेरे वीजा अनेक दृष्टान्तो छे. इति कर्मजा बुद्धिः ॥
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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