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________________ २६] ॥ श्रीलोकनकाशे तनोयः सर्गः ।। (सा० १५९) (३७७) __ अर्थ उपर वतावेल ३३६ भेदोने औत्यत्तिकी-वैनयिकी-कार्मिकी-अने पारिणामिकी ए ४ बुद्धिसहित करीये तो ते मतिज्ञानना भेद ३४० थाय के ।७४९॥ जे वस्तु देखी नयी पूर्व सांभळी नथी अने मनथी कढी चितवी पण नयी छतां जे बुद्धिवडे तुर्तज ते अर्थ यथार्थ (सन्यपणे) ग्रहण थाय ॥ ७५० ॥ अने आलोक परलोकविरुद्ध न होय तथा निश्चये फळने आपत्रावाळी होय ने औत्पत्तिकी बुद्धि रोहां दिकनीपेठे जाणवी ॥५१॥ तथा गुरुनो विनय करवाथी पाप्तथयेली, आलोक अने परलोकमां उत्तमफळ भापनारी. अने धर्म-अर्थ-काम तथा मोक्षना कार्यमा कुशल एवी वैनरिकी बुदि कहेवाय छे. ॥ ७५२ ।। जेम विन १ राथिमी नगरी पासेना कोरक गाममो भगतनामनी नट हतो तेनो पहेली बी मरण पामवायी ने चीजी श्री परायो पण नवी परणेली श्री जुनी बहुमा रोधक नाममा छोकरानी माथे सारीरीने वर्मती नथी, न्यारे गेहके कई के जो तुं मारापर या करे छे नोह ने कोरक यवन बताधी आपीश ससांपण ने नधी स्त्री मानी वयना रोइक पर प्याथी धने छे. त्यारे गहचे. पकवार रात्र हैं पिता आ कोर घरमांपी जाय छ ! पम ब्रूम पाटी पिनाने जगारतां काइ नहिं देखवाथी पोतानी मी माठा आचरणवाको हर्श पम लाग्यु. अने ग्यारथी से टेनी साथे योलतो के वार्तालाप विशेष करतो मी अने प्रमरहित बतें छे, मा बनाव गधी स्त्रीप जोषाथी रोहकने पगे लागी सेना पितानो प्रेम कायम राखवा का त्यारे गेह पातानी अतुल्यबुद्धि होघाथी घोजीषार पक रावे हे पिता आ घरमांथी कोषक आय छ : पम चूम पाही उटी त्यारे पिताए कोइने नाहिं देखषाथी पूछतावासकोडाथी पोतानी छांया बताधी कई के जुओ आ जाय छ, आ समाषथी बाळकनी अमानता ममजी पहेलो पण आ छायानेज पुरुष कामी शे पम धारी पुनः नयी श्रीपर गग धरमा लाग्यो परन्तु रोइक तो पोताने विषादिकी नधी मा मागेनांग्यशे पषी धाकधी पकली नहिं अमतां नित्य पोताना पितानी साथ जमे छे. हा एक दिवसे पोताना पिता भरतन साथै हक उायिनी नगरीमा गयो अने सर्व ठेकाणे फरी फरीने आखो नगरीनी रचना जोड. न्याम्बार पितासहित पोतामे गाम आवधा माटे सिमानदी सुधी आल्या नेटलामा भरत का यस्तु भूली जवाथी रोकने नवीना किनारापर सूफी पोते नगरीमा आयो. से यखते रोहके नवीपरनी रेतीमा पोते ओयेली मर्ष मगरी आलेमी कीडा करे छ तेटलार्मा उज्जयिनीनो राजा बगीमां बेसी कोइप्रकारे पकली पड़ी ग. येलो त्या आधी पदयो, ने जेटलामा चीतरेली मगरी नरफ आबे छ तेटलामा रोहके सामे आयी राजाने एकदम अका-यां, गजाप आ गेहकन माइन अने बुद्धिबळ जोड प्रसन्न था तेनु गाम टाम पूछी पाताना नगग्मां प्राध्या अने
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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