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________________ (३७८) ॥ ज्ञानबारे श्रुतनिश्रितमतिज्ञानभेदविचारः॥ बार) यवान् एवा कोइ निमित्तोचाना शिष्ये घटनो दिमाश थये डोसीने हुर्तज पुत्रनो मेळाप यवान का ॥ ९५३ ॥ तथा आचार्यना उपरे शथी माप्त ययेलं होय ते शिल्प अने स्वतः माप्त थाय ने काम कवाय अथवा नित्यनो व्यापार ते शिल्प अने कोइ बखतनो च्यापार ते कर्म कहेवाय ।। ७५४ ।। ते कर्मना आग्रहथी (सफळ न पाय तो पण वारंवार फर्या करवाथी) तेमांथी परमार्थ माप्त ययेल होय तेवी तथा कर्मना (ते कार्यना) अभ्यास अने विचार वढे विस्तार पामेली अने तेना (कार्यसिद्धिना) यशरूप फळने आपवावाळी. ॥ ७५५॥ अने ते ते कार्यों करवामां समयं ययेली ते का. भरत पण नयमांधा से बस्तरआधी रोहक साहस पासानं गामे आल्या. हवे राजाप पिताने ४९९ मंत्री के परम्म से सईनो उपरी पक पांडसेमोमंत्री रोहफने घमाववाना विषारथी बुरिनी विशेष परीक्षा करवा माटे रोहकमा गामना मुम्बी बगेरे पर पखु फरमान मोकायु के समारा गामनी महार जे पणी मोटी शीला छ लेने उपायपाविमा पक मोरी र राजाने रहेषा योग्य बनावी प शिलानु दोषणु करो. आ आज्ञा केवी रीते समे तेनो बिचार करवा माटे आखु म भेगु धयु छ त्यो मरतनट पण आष्यो छे अने शु करवू? तेनी उपाय सातो गयी. हवे या बाजु रोक्षक भूण्यो थयो के छसां पिता हि आवेस होवाची गाइ शकतो मी. तेपी रांडक पिताने तेहवा आध्यो त्यारे पिताप चिंतार्नु कारण दर्शावी ज्या सुधी राजानी आज्ञानो उपाय म र स्यां सुषी जमषानुं रण ६ महिं. पम कहेव,थी रोहले सर्व गामने उपाय दशम्यो के ज्यां शीला पसी के त्यां सेमे पडी वा दई नीचेथी जमीन खोदी रप बनायो मेथी राजामी भाशा यथार्य सम्वाशे प प्रमाणे सर्वलों के उपाय कबल राखी ते प्रमाणे करी राजाने जणावतां रा. जाए पूछछधुं के ए उपाय कोणे दर्शाप्यो १ स्यारे तप रोडकन नाम धी). म्यारवाद पुनः गजाए घेट मे सागे रोते खपाडतां छतां पण तोल प्रथम जेटलुज राखवानो-शीजा कुफा विमा इकबामे सरावधानी-रेतीनां दोर वणवानो इस्ति मरी गया छर्ता मरोगयों पषी खबर माह आपा पण मरी गयेलो जणाषानो-रोडकमा नाममो कूषो पोतानी मगरीमा मंगावधानो-गामनु बन पूर्व विशामा छे तेने पश्चिम दिशामा फेरवधानो- अग्नि बिना क्षीर गंधवानी-दिवस रात शुक्लपक्ष अने कृष्णपक्ष बगैरे मारतो पर्जी पीतामी नगरीमा आषपानी इत्यादि से जे आदेश कर्यो ते सर्व आदेशोनुं रोक जि. राकरण करषाथी राजाप ने सर्व प्रधामोमा श्रेष्ठ प्रधान पक्षी आपी. प मधेधि सर्व वर्णन तथा भौरपतिकीबुद्धिमा सूचक वीजा अनेक दृष्टान्तो पी मंदोजीनो वृत्तिर्मा छे. १ आ वष्टान्त पूर्षापर अस्थानिकादि सहित व वाय.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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