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________________ ॥ मालाधरणषिवेचनम् ॥ तीर्थमा, अने ते पार्श्वनाथना उपदेशथी तेमने हाथे प्रवज्या ला, गणधरपर पामी, तमा कल्याण धशे, ते प्रमाणे आपेल उत्तर सांभळी भावि उपकार मनमां लाषी अनेक भत्र्य जीवोमा योधि पीजनुं साधन मतिमा भरावी सुषिहित आचार्य पासे प्रतिष्ठा करायी अद्भूतमधिमानिधान ते प्रतिमा पूजित था हती, कालान्तरे 'श्री ऋषभदेव प्रभुना' विद्यमान कालमां चोवीशीनी शरुआतमा छशस्थ अवस्थामां रहेला 'श्रीऋषभदेय प्रभुनी सेवाथी सन्तुर धयेल श्री धरणेन्द्र जैखोने अडतालीश या अड़तालीश हजार विद्याथो वैतादय पर्वतनी दक्षिणोत्तर श्रेणिने राज्य समर्पण कर्यु छतुं ते 'भी नमिबिनमि' विद्याधरेन्द्रो पांसे ते [श्री शंखेश्वर पाचप्रभुर्नु] बिम्ब आव्यु, तेो निरन्तर पूजन करता हता. त्यारपान सौधर्माधिपति 'शक' इन्द्र महाराजे स्वधिमानमां से विम्बर्नु पूजन कयु. तेमणे कालान्तरे रैवतायलना कांचनबलानक' नामक शिस्त्ररपर स्थाप्यु. त्यांधी ते प्रतिमानी 'चंद्र-सूर्य' ज्योति केन्द्रोये स्वधिमानमा ला जर चिरकाल पूजा करी, न्यारवाद से प्रतिमा तेमणे पूर्वस्थान व नकाबल (गिरिनार गिरि) ना.शिखरपर स्थापी. त्यांची नागेन्द्र धरणकुमारे मेळवी. तेज आ शंखेश्वर पाश्वनाथप्रभु छ, के जेमनी सेवा मिषे 'धरणेन्द्र' सर्वदा समीपमांज रहे छे, तेम छाशीहजार मागकुमारोमा अधिपति जेमर्नु पूर्वमनमा 'वर्धमानआचार्य' नाम इतुं ते नागेन्द्र जे शंखेश्वर पार्श्वनाथना अधिष्ठायक के. पाटणमा श्री जिनहर्षसहिए रात्रि भोजनरास यनान्यो छे, सेना मंगलाचरणमा नेमो भी चन्द्रमभुस्वामिनाधारा (कालमा आ विंब भराव्यानुं जणाये छे "श्री शखश्वर' पास प्रभु, महिमा त्रिजगवास, ॥ जक्षजागतो जेहनो, पूरे वंछित आस १ ॥ अनी मूर्ति जेहनी, तुरत जणाधे वेह, ॥ वारे चंद्र प्रभुतणे, पिंच भराव्यो पह ॥२॥ "श्री प्रद्युम्नसूरि" कृत "समरादित्य संक्षेपमा" -भूतानन्द' नामक मागकुमार निकायनी उत्तरश्रेणिना अधिपति जेमना मधिष्ठायक वर्णव्या छे ! ! अडतालीश बजार यक्षोना नायक पार्श्वयक्ष जेमना यक्ष से.!! जेमना आराधनथी "सज्जन" मंत्रीये अनेक यंत्र, मंत्र, तंत्र, सिद्धिमओ सिद्ध करी इती. ! ! जेमनी उपासना तेमज स्नात्रजलना सिंचनथी "बुर्जन शल्य" नामना "झीवाडाना' राजा के जेमने प्रत्यक्ष प्रभाव देनाडनार अधिष्ठायकसहित सूयप्रतिमानी उपासना करतां अधिष्ठायकदेवे का इतुं जे, "तवाङ्गकुप्ठादिरोगमयो भयाऽपनेतुं न शक्यचे, ततस्त्वं शंखेश्वरपाश्वनाथपा प्रयाहि, सरत्र तब सङ्गीणान्रोगानपनेति' नारा शरीरना कुष्ठादिरोगो दूर करवा माराथी शक्तिमान् थवाय तेम नथी, माटे ते शंखेश्वर पार्श्वनाथ पांसे जा, तेज 'सारा सर्व शरीरमां व्यापी गयेल समग्न रोगोने दूर करशे.' त्यार बाद से राजा शंखेश्वर पार्श्वनाथनी आराधनाथी सर्व रोग मुक्त थयो. ! भने तेणे षिमानतुल्य नूतन बैत्य (मंदिर) घान्यं, तेमां सेमनी (शश्वर पाश्वनाथप्रतिमानी) स्थापना करी, पूर्वोक्त समप्र वर्णन प्राचीन भगवंतोये स्तुतिमिपे वर्णव्युं पण छे. "अपूपुजत्त्वां विनमिनमिश्न, वैतादयशैले वृषभेशकाले । सौधर्मकल्प सुरनायकेन, त्वं पूजितो भूरितरं च कालम् ॥१॥ भाराषितस्त्वं समय कियन्त, चान्द्रे विमाने किल भानवेपि। पनापतीदेवतपा
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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