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॥ श्रीलोकप्रकाशे प्रथमः सर्गः ।। मुखे भाषेलो देषाराधननो प्रकार, महरपुरुषोनी अपूर्ष वाक्षिण्यता, शलाका पुरुष वासुदेवकृष्णे देवाराधमनो करेलो व्यवसाय, शाश्वती नही पण कृत्रिम मतिमा उपर सम्यग्रष्टि देवोनी स्थिति नहि पण भक्तिप्राग्भार, प्रभु प्रतिमानो अनुपम महिमा इत्यादि अनेक सारतस्योमी उपलब्धि धाय के !! हो पा श्री पावनभुनी प्रतिमा कोणे निर्माण करी ? शा हेतुथी ? त्यार पछी धरणेन्द्र नागकुमाराधिपति पांसे क्यांधी आवी ? विगेरे विगेरे अनेक ऐतिहासिक आरेकामो अवकाश पामे छे ते संबंधमां गुरुकृपाधी शालोमा मली भावतो इतिहास तपासतां सर्व शंकास्थानो चिलय पामे छे. या द्रव्यानुयोगनो अन्य दोषाधी रोमन अन्धविस्तारना भयधी था तेमज बीजा पण प्रसंगानुप्रसंगे प्राप्त थता भनेक विचारो आगल उपर भाटे मुल्तवी राखीम घाजा प्रयोमा विस्तृत विचार करेलो होबाधी आ स्थले संकोच करवामां आवे के।
प्रस्तुत मंगलश्लोकमां वर्णवेला 'शंखेश्वरपुरोसंस' विशेष्य पदान्तर्गत विशेषणपदी 'उपाध्यायजी श्रीमान्ने' स्थापना निक्षेपस्वरूप प्रतिमानो नम स्कार आ मंगलाचरणमा अभिप्रेत छ, सेम सहज अनुभव पर आवे छे. परन्तु ते स्थापनानिक्षेप पण युक्तिथी, तेमज 'श्रीमगषतीजी' आदिमा पर्णवेल अधिकारोधी तेमज 'शाताधर्मकांग' 'रापप्पसेणीय' 'जीवामिगम' विगेरेमा 'द्रौपदी', सूर्याभइय, "विजयदेव' विगरेए प्रतिमाजी पांसे भक्तिपूर्वक उदार भावथी उबा. रेल मायजिनना अधिकारमय शक्रस्तष नमुत्थुर्ण विगेरे स्तोत्रपाठथी, तेमज प्रतिमाजी आगल अलेवेल धूपना प्रसंगमा "धूध दाऊणं जिणघराणं" इत्यादि पाठोयी भाषनिक्षेपनी साथे कञ्चित् अभिनपणे रहेल छे. आपोंक्ति पण के के 'जिनपडिमा जिन सारीखी.' हवे इतिहासपिए अवलोकन करना मा प्रतिमा जीना संबंधमां मळी आवो इतिहास परवार करे के के, गई चोषीशी मटले के जेषो आ ऊतरता भावधाळा छ आरा स्वरूप 'अवसर्पिणीकाल' प्रवते के, मने छठो धारो पूर्ण थये चढतां भाववाला छ आरा स्वरूप 'उत्सपिणीकाल' प्रधतशे के जे घने कालोनु स्वरूप 'काललोकमा' प्रन्थकार पोतेज विस्तारथी वर्णन करशे. तेवा आ अवसपिणीकालना प्रथम भारा पूर्वे थइ गोल उत्सर्पिणी कालना छ आराओ पैकी धीमा चोथा आरामोमा मली 'ऋषभादि-महावीर पर्यन्त' घोषीश तीर्थकरोनी माफक 'केवलज्ञानी प्रभृति संप्रति पर्यल' खोवीश नीर्थकरो थर गया . जे पैकीना श्रीशा भारामां धयेल 'इन्द्रमहाराजे जन्माभिषेक समये कंठमा पूजन निमिने स्थापन करेली दाम । माला) उदर (पेट) उपर शोभी रहेल होयाथी दामोदर" शुभ नामथी प्रसिद्ध थयेल आ चोवीशीना सोलमा प्रभु शान्तिनाथ' नथा भावि चोवीशीना नवमा 'पाहिलप्रभु' तुल्य नवमा तीर्घकरप्रभुना शासनमां "आपराढि" नामना मध्य भायके माझं पोतार्नु कल्याण क्यारे ? कोना तीधमां ? अने कोना आलंबनयी ? थशे, तेवा प्रो पूछेला, जेना उत्सरमां प्रभुप. ने कालनी अपेक्षाए भावी खोवीशीना एटले के वनमान चौधीशीना वीशमा नीर्थकर 'पार्श्वनाथप्रभुना' समयमां, मना