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(३७०) ॥ ज्ञानशारे दृष्टाजतपुरःसरंच्यअनाक्महादिमतिज्ञानस्वरूपम् ॥ (बार द राखत्री) ते धारणा कडेली छ. एनी स्थितिन काल प्रमाण संख्यात अथवा असंख्यात काल छ. ॥७१३ ॥ कारणके असंख्यवर्षना आयुष्यवाला जीवो (देव -नारक ने युगलिको) बाळपणमां अनुभवेली वस्तुने अन्त्य अवस्था मुरी स्मरणमा लावे छे, माटे धारणानो काळ असंख्यवर्ष प्रमाण है. ॥ ७१४ ॥ जेमे शब्दद्रव्यनो समूह प्रथम श्रोत्रन्द्रियनी साथै सम्बन्धवाळो थाय छे, अने त्यारवाद "कंइक सांभम्युं "एत्रो अर्थावग्रह थाय छे. ।। ७१५ ॥ त्यारवाद स्त्री वगेरेना शब्दमा रहेला मधुरतादि स्वभावने चिंतये ते ईहा, अने न्यारवाद ( अमूकनो शब्द छे. एम ) निर्णय थाय ते अवाय अने त्यारबाद (ते शब्द याद राखी मुके ते) शरणा थाय, ॥७१६॥ प प्रमाणे बुद्धिमानोए गन्ध रस अने स्पर्शमां पण (अनुक्रमे) घ्राण-जिला-अने स्पर्शेन्द्रियना व्यअनावग्रहादि विचारवा ||७१७|| परन्तु चक्षु अने मनना त्र्यअनावनो अभाव होवाथी एबे इन्द्रियोना धारणा सुधीना अर्थावग्रहादिभेद होय छे, ॥ ७१८ ॥ जेम कोइक वृक्ष प्रथम दृष्टिगोचर थतांज आ कंइक के, एवा प्रकारनु जे ज्ञान थाय छे ते अर्थावग्रह ।। ७१९ ॥ ल्यारवाद ते वृक्षमा रहेला धोनी (अस्तिरूप अने वृक्षथी अपरधर्मोनी व्यार- . चिरूप ) परीक्षा करनी ने ईटा थाय है, अने त्यारबाद आ वृक्ष ज छै एना पकारनो जे निश्चय थाय छे. ते अवाय कवाय छे ॥ ७२० ।। अने त्यारवाद ते निश्चय करेला वृक्षने जे याद राखवू ने धारणा छे. ए प्रमाणे मनना पण अर्थावग्रहादि विचाराय छे. ॥ ७२१ ॥ जेम विस्मृत थयेली ( भूली गयेली) वस्तुने प्रथम " कंइक हर्तृ " एची रीते याद करे ( ते अर्थावग्रह ), अने ल्यारवाद एक चिचे ते वस्तुना धर्म संभारवामां आवे (तेहा)।। ७२२ ।। अने त्यारवाद ने ते धर्मोंना स्मरणयी ते ( विस्मृत ) वस्तुनो निर्णय थाय (ते अवाय ', त्यारबाद संभारीने निश्चय करेल तेज वस्तुने याद गरखवी [ते धारणा ] ॥ ७२३ ।। ए सर्व अनिन्द्रिय (मन) निमित्तनु मतिज्ञान छे. आज माटे ए [मतिज्ञान त्रण प्रकारच्छे, तेमा प्रथम इन्द्रियहेतुक ॥ ७२४ ॥ बीजुं अनिन्द्रियोत्पत्र, अने श्रीजु इन्द्रियानिन्द्रियोत्पन्न त्यां प्हेलु मतिज्ञान एकेन्द्रियादिकने होय के. कारणके मन रहित जीवोने ।। ७२५ ॥आ मतिज्ञान केवळ इन्द्रियनिमित्तनु
२ अहिथी जे दृष्टांता अपाय ते व्यावहारिक अर्थाषप्रहादिना आणपां. अन्यथा अमुफनो शब्द छे. एवं ज्ञान नहि यतां मात्र आ शब्द छे था कप छ वा गन्ध छ. इत्यादि विषयमात्रनुज कान थाय , के जे नैश्वयिक अर्थावबादि कहेवाय,