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________________ (३६६) ॥ज्ञानद्वारे व्यअनावग्रहादिमतिज्ञानस्वरूपम् ।। (द्वार न्द्रियनो स्पर्शनादिपुद्गलो साये एटले स्पर्शादि आकारे परिणमेला पुद्गलो साथे सम्बन्ध थाय छे,ते वरखते "आ कंडक छे"एको पण बोधयतो नयी पण सतेला अने बेशुद्ध थयेला एका सूक्ष्मज्ञान (अस्पष्ट झान) वाळा पुरुषनी पेठे ते सम्बन्ध अव्यक्त ज्ञानवालो होय छे ते वरखते ते स्पर्शादि उपकरणेन्द्रियने स्पर्शला द्रव्यसमूहबडे जेटला प्रमाणनी अने जे विज्ञान शक्ति प्रगट थाय छे. एवा प्रकारनी ने विज्ञानशक्ति अपग्रह नामे कहेवाय छे. अने ते स्पर्शनादि उपकरणेन्द्रियनी साघे संश्लिट थयेला ( सम्बद्ध ययेला ) स्पादिवाकारे परिणमेला व्यसन नामना पुद्रल राशिने ग्रहणकरनारी (विज्ञानशक्ति) अवग्रह एम कहेवाय छे. ते कारणथी एम करेलु के के ( तात्पर्य ए आयु के ) स्पर्शनादि उपक० ने सम्बद थयेला स्पर्शादि आकारे परिणमेला पुगलो व्यञ्जन कहेवाय छे. अने अमुक मकारनो अर्थावग्रह करनार होवाथी ते व्यञ्जननो ( विषयविपयिनो) परिच्छेदक (गणाबनार) एवो जे अव्यक्त बोध ते (व्यञ्जन) अक्ग्रह कवाय छे. वळी ते व्यअनावग्रहथी कंडक विषय निश्चयवाळो एटले " आ कंडक के " ए प्रकारे सामान्य जणावनार एवो बीजोपण (अर्थ) कोलाम है. भने व्यारबाद ईडा वगैरे प्रवत्त छे" पुनः रत्नाकरावतारिकामा अवग्रहर्नु लक्षण आ प्रमाणे कई छ के-“विषय अने विषयिनो सम्बन्ध थया बाद तुर्तज उत्पन थयेल सत्तामात्र विषयना दर्शनथी (सामा० बोधयी ) थयेल प्रथम अवान्तर सामान्य आकारवाली वस्तुनुं जे ग्रहण ते अवग्रह फहवाय छे. टीकार्थः-विषय एटले सामान्यधर्म अने विशेषधर्म ए उभय धर्मयुक्त पदार्थ, अने विषयी एटले चक्षु वगैरे ( उपकरणेन्द्रिय -चा अ. भ्य० निति०) ए बन्नेनो ( विषय अने विषयीनो) समीचीन एटले भ्रा. त्यादि रहितपणे अर्थात् अनुकूळ-योग्य जे निपात एटले योग्य प्रदेशमां (इन्द्रिय अने विपयनो परस्पर सम्बन्ध थइ शके लेवा स्थानमां ) रहेवा पj [ अने ते प्रमाणे रहेवाथी स्पर्श थतां ] तुर्तन समुद्भुत एटले उत्पन्न थयेल जे सातामात्रगोचर एटले सर्व विशेरधर्म सिवायना सत् ( विद्यमानपणा ) मात्रना विषयवाळोजे दर्शन बोध ( एटले कइक छे ए रूप विद्यमानतानो जे बोध) एटले निराकार ( आकार एटले विशेपर्म तेथी रहित एवो ) बोध तेवा निराकार बोधथी उत्पन्न थयेलु जे संचसामान्यथी अवान्तर सामान्याकारैः एटले अ १ सर्वपदार्थमा व्यापी ने रहनार 'सत्ता' स्वरूप महासामान्य [ परसामान्य] ना ठग्राप्यवृत्ति (म्यूनदेशवृत्ति) सामान्य से अषान्तर (अपर) सामान्य कषाय,
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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