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२५] ॥श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः (सा० १४९) (३६१) स्थिति अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टस्थिति देशोनपूर्वकोटि (४) सर्वरितीनी जधन्यस्थिति ? सेमय, उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि, सर्वजीवापेक्षया सर्वसामायिको सर्वकाललभ्य थे,
प्रतिपद्यमानजीवसंख्या-(१-२) सम्यक्त्व अने देशविरतिसामायिक पामनार जघन्यथी एक वा बे उत्कृष्टयी क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमाभागना आ. काशप्रदेशराशिसल्यापमाण (दशविरति करनां सम्यक्त्व पामनार असंख्यगुणाधिफ जागवा ) ४ श्रुतसामायिक पामनार उत्कृष्टथी घनीकृतलोकनी एकपदेशात्मक श्रेणिना असंख्यातमाभागगत आकाशमदेशप्रमाण, जयन्यथी एक वा चे, (४) सर्वविरति पामनार उत्कृष्टथी सहस्रशः प्रमाण जयन्यथी एक वा के.
प्रतिपन्नजीवसंख्या-सम्यक्त्र अने देशविरनिनिपन्न वर्तमानसमये जघन्यथी उत्कृष्ट प्रतिपद्यमान करता असंख्यातगुण, उत्कृष्टथी विशेषाधिक, श्रुतसामायिकपतिपन जघन्य वा उत्कृष्ट सप्तरज्ज्वात्मकमतरना असंख्येयभागगत असंख्यश्रेणि संबंधी आकाशप्रदेश प्रमाण. सर्वविरतिप्रतिपन्न संख्यातममाण.
प्रतिपतिसजीवसंख्या-सर्वविरतिपतित अनन्ता तेथी असंख्यगुण देशविरतिपतित तेथी असंख्यगुण सम्यक्त्वपतित तेथी अनन्तगुण श्रुनपतित जीवो जाणवा.
अन्तरकाल-श्रुतर्नु जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनन्तकाल,सम्यक्ष, देशविरति अने सर्वविरतिर्नु जघन्य अन्तर्मुहर्त उत्कृष्ट अपापुद्गल परावर्तकाल.
निरन्तरपतिपत्तिकाल-चारे सामायिकनो जघन्यकाल बे समय, उत्कृट सम्यक्त्व श्रुत आने देशविरतिनो काल आवलिकाना असंख्यानमा भागमा आवेला समयममाण अने चारित्रनो आठ समय सुधी निरन्तर प्रतिपत्तिकाल छे.
विरहकाल-उत्कृष्टथी सम्यक्त्व अने श्रुतनो सान अहोरात्र विरहकाल, जघन्यथी एक समय, देशविरतिनो जघन्यथी त्रण समय उत्कृष्टयी वार अहोरात्र, सर्वविरतिनो जघन्यथी त्रण समय उत्कृष्टथी पैदर अहोरात्र काल, ___ भवसंख्या-चारेनो जघन्यथी एक भव उत्कृष्ट्थी सम्यक्त्व अने देशविरतिना क्षेत्रपल्योपमना असंख्येयभागगतप्रदेश राशिप्रमाण, सर्वविरतिना आठ भवो, तसामायिकना अनन्तभवो.
आकर्ष-सम्पक्त्व, श्रुत अने देशविरति एणना एक भवमा सहस्र पृथस्व, अनेक भवमा असंख्यसहस्र, सर्वविरतिना एक भवमां सतपृथक्त्व, अनेक भवोमां सहस्रपृथक्ल,
१ पारिपरिणामना उत्तर समये आयुष्य क्षव थवायी.
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