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॥मामायिकचनुप्फे विशेषविचारः ॥ सा) लब्धिओ साकारोपयोगे उत्पन्न याय ते वचन प्रवर्धमानपरिणामवाळा जीवनी । अपेक्षाये जाणवु)
शरीरद्वार-औदारिकमां चारे सामायिकना उभय होय, वैक्रियमा सम्यक्त्वश्रुतना उभय होय देशविरति सर्वविरतिना पूर्वपनिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय, पाको शरीरमा योगदारने अनुसार जाणवू.
संस्थान संघयणद्वार-सर्व संस्थानो तथा सर्व संघयणोमां चार सामायिकोना मतिपद्यमान तथा पूर्वप्रतिपन्न होय, अवगाहनावार-मध्यम अवगाहनावाला मनुष्य चारे सामायिकना उभय होय,
लेण्याद्वार-द्रव्यलेश्यानी अपेक्षाये छये लेश्यामा सम्यक्त्व अने शुतना 'उभय होय, तथा देश अने सर्वविरतिना प्रतिपन्न होय, जो आदि त्रणमा देश सर्वविरतिना उभय होय, भावलेश्यानी अपेक्षाये जो आदि त्रणमा चारेना प्रतिपद्यमान होय, प्रतिपन्न ए लेण्यामां होय, __ परिणामहार-वर्धमान तथा अवस्थितपरिणाममा चारेना उभय होय, हीयमान परिणाममा प्रतिपद्यमान न होय पूर्वपतिपम होय.
वेदनाद्वार-शाता अशाता उभयमां चारेना उभय होय.
विषयबार- सम्यक्त्वमा सर्वद्रव्य सर्वपर्याय विषय छे, झुन अने सर्वविरतिमा सर्वद्रव्य विषय छे. सर्वपर्याय विषय नथी, देशविरतिमा सर्वद्रव्य विषय नयी तेम सर्वपर्याप विषय नथी. ___ स्पर्शकजीवसंख्या-(१) श्रुतसामायिक संव्यवहारराश्यन्तर्गत सर्वजीवोये स्पश्यु छे,
(२-३) सम्यक्त्व भने सर्वविरनि सामायिक सर्व सिद्धजीवोये स्पध्र्या के.
(४) देशविरतिसामायिक मरुदेवामामा विगैरेनी जेम एक असंख्यातभागन्यून सर्व सिद्धजीवोये स्पर्य छे.
स्थिति-एकजीवापेक्षया (१-२) सम्यक्त्वसामायिक अने श्रृनसामायिकनी जघन्यस्थिति अन्तमुहूर्त, उत्कृष्टस्थिति छासठसागरोपम (३) देशविरतिनी जघन्य
। सिद्धावस्था पामेला जीवोमी अपेक्षा उपरोक्त विचार छ ममारम्थजीवोमां पण स्पर्शकलीयोनी प्रानि छ, परन्तु ने सिद्धजीवी करतां स्वल्प छ. मेथी सेनी अपेक्षा लोधी नयी तेम संभधे छ. २ दशषितिना स्पर्शकजीवो पण संसारस्थ सभ्य छे. परन्तु ते पण एवं प्रमाणे सिद्ध करतां स्वरूप छे. तेथी प्रहण कर्या नथी तंम मभवं छ.