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२५मुं) ॥ श्रीलकमका तृतीयः सर्गः (सा० १४९)
(१५)
प्रतिपद्यमान प्रतिपन होय, औपपातिक ( देव नारक) मा सम्यक्त्व अने श्रुतना मतिपद्यमान अने प्रतिपन्न होय.
स्थितिहार - आयु शिवाय सातकर्मनी उत्कृष्टस्थितिमां चारना उभय ( प्रतिपद्यमान, प्रतिपक्ष ) न होय, आयुनी उत्कृष्टस्थितियां (सर्वार्थसिद्धयां ) स म्यक्त्व अने श्रुतना प्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय, सर्वकर्मनी मध्यम स्थितिमां चारेना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न होय, सातकर्मनी जघन्यस्थितिमां देशविरति शिवाय त्रण सामायिकना पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय, आयुनी जयन्यस्थितिमां चारेना उभय पण न होय,
वेद, संज्ञा, कषायद्वार-त्रणे वेद चारे संज्ञा अने सकपाय अवस्थामां उभ य पण होय, अवेदि, अकपायी देशविरति शिवाय गणना प्रतिपन्न होय,
आयुर्धार- संख्याता आयुवाळा मनुष्य चारेना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न होय, असंख्येय आयुवाळा सम्यक्त्व तथा श्रुतना प्रतिपन्न होय प्रतिपद्यमाननी भजना [ कोइक युगलिक छ मास शेषासु छते प्रशस्त लेश्या परिणामे सम्यक्त्व पामे छे, इति प्रज्ञापनापश्चमपदवृत्ति )
ज्ञानद्वार - (ओघे ) ज्ञानी चारे सामायिकना नयदृष्टिये प्रतिपद्यमान नथा प्रतिपन्न होय [विभागे] मति, श्रुतज्ञानी चारेना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न होय अज्ञानी सम्यक्त्व, श्रुत अने देशविरतिना प्रतिपद्यमान न होय, पूर्वप्रतिपन्न होय, सर्वविरतिना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न होय, मनःपर्यायज्ञानी देशविरति शिवाय त्रणना पूर्वमतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान न होय, देशवितिना प्रतिपद्यमान अथवा प्रतिपन्न न ज होय, सर्वविरतिना तीर्थङ्करमभ्रु समकाले प्रतिपद्यमान होय. haarat सम्यक्त्व अने सर्वविरतिना पूर्वप्रतिपन्न होय, प्रतिपद्यमान नयी.
योगद्वार - औदारिक सहितना त्रण योगमां चारे सामायिकना उभय होय, यस सम्पनत्व भने श्रुतना उभय होय, आहारसहिनमा देशविरति शिवाय त्रणेना पूर्वप्रतिपन्न होय, केवल तेजस फार्मणमां अपान्तरालगतिये स पूर्वमतिपन्न होय, (भविष्यति भूतवदुपचारः ए न्याये ) अगर संभवापेक्षया कायवायोगवाळा विकलेन्द्रियमां सम्यक्त्वथी पडता 'घण्टालाला' न्याये tatar सम्भये, केवलमनोयोगनी तथा केवलबाग्योनो संभव नथी, केवल औदारिक, fhani उभय न होय.
उपयोगद्वार - साकार अनाकार क्षेत्र उपयोगमा चारेना उभय होय सर्व