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|| श्री लोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० १४९)
| सामायिकचतुष्के विशेषविचारः ॥
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क्षेत्र विचार - (माप्तिसमये ) सम्यक्त्व अने श्रुतसामायिक णे लोकम, सर्वविरति मनुष्यलोकमां, देशविरति नियैग्लोकमां (प्रतिपच ) सम्यक्त्व, श्रुत अने देशविति त्रणे लोकमां सर्वविरति तिर्यग्लोक अने अधोलोकमां, कहाचित ऊर्ध्वलोकमां.
दिशावर - (क्षेत्र दिशा ) प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न पूर्वादि चारं महादिशामां चारे सामायिक होय!, एक प्रादेशिक विदिशा ओम जीवावगाहना न होart विदिशाओंम न होय, (तापक्षेत्र तथा मज्ञापकदिशा ) चारे सामायिकना afreeमान तथा प्रतिपन्न चारे दिशा तथा चारं विदिशाओमी होय (ताप तया प्रज्ञापक विदिशाओंमां महाममाण लेवाय ले. जेम भगवंतनी बार पढ़ाओ अमुक अमुक विदिशामा होय छे तेम कहेवाय छे. ) ऊर्ध्व-अधोए वे दिशाओमां सम्यक्त्व अने श्रुतनो प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न होय, देशविरति - सर्वविरनिनो 4-प्रतिपद्यमान न होय, पूर्वप्रतिपन्न ज होय !
( भवदिशा ) एकेन्द्रियना आहे भेदोमां चारे सामायिकता प्रतिपद्यमान तथा पूर्वमपि न होय ! त्रण विकलेन्द्रियमां चारे सामायिकना प्रतिपद्यमान न होय तथा पूर्वमतिपत्र पण सम्यक्ल अने श्रुत ए वे ना होय, देश सबैविरतिना न होय, पंचेन्द्रियतिर्यचमां सम्यक्त्व - श्रुत अने देशविरतिना पूर्वप्रतिपन्न होय प्रतिपद्यमाननी भजना सर्वविरतिना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपन्न न होय, नारक देवता, अकर्मभूमिज, अंतरर्जीपण मनुष्यों ए चारमां सम्यक्त्व अने श्रुतना पूर्वपतिपद्म होय प्रतिपद्यमाननी भजना, विरति न होय ! कर्मभूमिज मनुष्योयां नारे सामायिकना पूर्वमतिपत्र होयज, प्रतिपद्यमाननी भजना संमूर्छिम मनुष्योमां चारे सामायिकना पूर्वप्रतिपन्न तथा प्रतिपद्यमान चेउ न होय.
कालद्वार - सम्यक्त्व अने श्रुतसामायिकना प्रतिपद्यमान तथा प्रतिपा छए आराम होय है. उत्सर्पिणीना श्रीजा चोथा अने अवसर्पिणीना जीजा
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१. पृथ्वी १२ ते ३, वायु ४, मूलबीज ५, स्कन्धबीज ६, अग्रबीज ७, पर्वबीज ८. शोप्रिय ९ श्रीत्रिय १०, चतुरिब्रिय ११ पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च १२. तारक १३, देवता १४ सम्मूर्छिममनुष्य १५, कर्मभूमिज मनुष्य १६, अकर्मभूमिज मनुष्य १७, अन्तरीपज मनुष्य १८ आ अदार भेदोमां जीवनुं परिभ्रमण होवाथी अपेक्षाये शास्त्रीय परिभाषाथी भावदिशा १८ कषाय छे.