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॥ श्रीलाकमकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० १४५] सम्यन्वादिप्राप्तिमा स्थितिसत्ता.
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(प्रसंगथी मोक्षणासि सुधीनो क्रम ) *मोक्ष (सकलकर्मक्ष सर्वविरनि (६ ला ७ मा गुणः नवनीय, आयु, नाम, गोरा
मासि.) चार अधाति भवोपमाहित कर्मोनी भय थषाथी.
संख्यातमागपस्थिति शैलेशी ( अयोग्यवस्था)
घटाढवाथी. मन वचन काया पत्रणे योगोनो निगंध
| *देशविरति (५ मा गुण प्रासि) करपाथी.
पल्यपृथकवस्थिति केवलज्ञान (सयोग्यवस्था)
घटाडवायी. मोहनीय ज्ञानाथ दर्शनानक अन्तराय प चार घातिक
सम्यक्त्व (४था गुण प्रालि ) मांनी लय थवाथी. .. | उस्कृष्ट स्थितिओमाथी घग़ाही क्षपकणि (१२ मा गुण. सुधी पल्योपमना असंख्यात भाग पहोचवा माटेभी प्रवृत्ति)
न्यून एक कोडाकोडी सा. संख्यात सागरोपमम्धिति
गगेपम्पिति (अंतः पदाइयाथी.
काडाकोडी माग उपशमणि (११मा गुण० सुधी
খিনি) কাঘী पहोषवा माटेनी प्रवृत्ति) । संख्यात मारोपमस्थिति | मिथ्यात्व (१लंगुण.) __ घटाडबाथी.
मिथ्यान्धमोहनीयना विपाकादयी ____ शका-जो सम्यक्त्वापसरे बाकी रहेली (अल-कोडाकोडी माग०) स्थितिथी पायपृथकत्व स्थिति खपाच्ये देशविरतिषणु पाम तो सम्यक्त्वमडित नवपल्योपमयी अधिकस्थितियाळा देवता धा नारकीमा उत्पन्न थयेला जीवने अथवा अधिक स्थितियाळा जीषने स्यां सम्पय उत्पम्न थया पछी भ्यां रखा छतां नवपल्यापम आयुष्य गया पछी देधिरतिपणु आअg मोरये ? नेम थाय तो तथा देवता नारकोने अधिरति फेम कहेवाय ?
उत्तर-स्यां पूर्वस्थितिने सपावता छतां पण अवितिने गांगे जेटलु खपावे तेटलो नत्रो अन्ध पढे छे. एटले के पूर्वनी स्थितिमांधी औलाश बीलकुळ यती नथी, + आ यन्त्रमा नीना स्थानेर्थी उपर हड़बान स्वरूप छ,