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________________ (३५२) || मिध्यादृष्टिद्वारे आभिनिवे० मिध्यात्वे गोष्ठामा हिलस्वरूपम् ॥ द्वार ] जिनेश्वरे कहेला तत्वोमां देवी अथवा सबंधी शंका थाय ते सांशयिक मिथ्या० कहेवाय ||६ ९४।। तथा जे अनुपयोगपणाथी उत्पन्न धरेलु (अव्यक्त) ते अनामोगिक मिथ्यात्व के जे मिथ्या० एकेन्द्रियादिकने होय हे ते पांच मिध्या० छे. ||६९५ ॥ तथा जे दृष्टि होने छते सर्वज्ञे कला तत्त्वमां राग पण न थाय अने द्वेष पण न होय ते सम्यगूमिध्यात्वनामनी मिश्रदृष्टि कहेली है ॥ ६९६ ॥ जेम नाली र (ज्यो एकला नाहीयेरज उत्पन यता होय ते) द्वीपमा रहेनारा मनुष्यो धान्य उपर रागवाला नहि तेन पराळा पण होता नयी तेवीरोते मिश्रदृष्टिवाळा जोवो सर्वज्ञोक्त समांगळा होता नयी || ६९७|| जे कारणे कर्मग्रन्थकर्ताए कर्तुं छे के"जीव- अजीव पुण्य-पाप-मंत्र-योक्ष-अने निर्जरा (ए नवतव श्रीती करभगवंतनी आशातना न कर्य ! छतां पण अभिनिवेश छोडता नथी त्यारे समश्रीसंधै शासनदेवताने उद्देशीने कामोत्सर्ग कयों, आसन कंपायमान चतां उपयोग आपी शासनदेवी पधार्या श्रीसंघ कार्य फरमायो | तेम प्रार्थना की, श्रीसंघ महाविदेहक्षेत्रमां अइ भीतीर्थकर भगवंतने आचार्य श्रीसुलिकापुष्पमित्र बिगेरे श्रीसंघ सभ्य श्रादीछे के गोष्ठामाहिल ? " आ पूछीने एकदम पधारो, शासनदेत्रीय श्रीसंघ पासे प्रवामां निर्विघ्नता रहेवाने काउस्लग्ग करणारूप अनुप्रहनी याचना करी श्रीसंघ काउल्सग्गमां रखो. धोतीथङ्करभगवान् ने पूछी शासनदेषता श्रीसंव पांसे पधार्या भगवान् श्रीमुखे फरमाये छे के--" आचार्य श्रीदुवैलिकापुष्प मित्र विगेरे श्रीसंघ सम्यवादी अमे गोमाल असत्य छे. आ भरतक्षेत्रमा गोष्ठा सातमी मिश्नव . " आ सांभळतो रोषथो धमधमेल गोष्ठा " आ कपूतनामां भीतीर्थङ्करभग चन्तनः चरणकमलमां जवानुं सामथ्र्य क्यांथी होय ? " इत्यादि वचनोथी शासनदेवीमी आशातना करवा लाग्यो, श्रीसंघ तेने अभिनिवेशभात्र नहिं छोeer बिगेरे कारणोधी संबधाच कर्या. आलोयण मतिक्रमण कर्या शिवाय अभिभाषथी मिथ्यात्वदशाए पहोंची कालधर्म पाम्या आवत्रिमधी अनेक सारबिचारो उद्भवे छे. ते श्रगीतार्थ गुरुमहाराजना सदुपदेशथी जाणषा. १-२ : निमोदादि सर्व छे पण जे रीते रहेला कला परी अ केम सभा ? म बुद्धिनी मन्दताथी घती देशशङ्का कहेवाय, अने निगव बिगेरे जीषादि मूळथी इशे के नहिं १ प सर्व शङ्का ३ सर्व असंक्षिजीवाने मन नहि होवाथी अध्यक्ष मिध्यात्व ज होय.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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