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२. मुं) ॥ श्रीलोकमकाशे तृतीयः सर्गः ॥ सा० १४२.) (३५१) आ शका थड़ ? न्यारे विन्ध्यमाधुए गोष्टा र्नु वृतान्त निवेदन कर श्रीगुरु महाराजे गोष्टा ने कथन यु मिश्यास्थरूप वाले युनिसा वर्णम्यु. गोठामाष्टिले ने फा के अन्योन्यच्याप्ननो चियांग न थाय पण ते अमात्य छ. कारण अन्योन्यच्याप्त वृधपाणीनो पण उपायथो विभाग पढे छ वकी कमषियोग न थाय ते पण खोटु छ. मरणममये आयुष्यकर्मको वियोग धाय. छ, पळी कर्मनो कचकनी जैम बायस्पर्शमात्रज होय तो सिद्धमहाराजनी जैम फर्मनिमिते धवावाळी अभ्यन्तर वैवनाओं कर्मना अभावी न थषी जोइप. अने ते तो अनुभवविरुथ छे, इत्यादि श्रीगुरुभगवन्ते फरमायला अनेक विचारों सांभळी विन्ध्यसाधुप गोष्टा ने तमारो विचार बगर विचाऱ्या ( विधार रहित ) छ तेम कहेवाची गोष्ठा• उत्तर आपवा समर्थ न रमा छतां विचार्यु के-जयमुं पूर्व सम्पूर्ण थया वाद पमनु अपमान करीश, कॉड दिवम नवमापूर्वमां साधुजामा पश्चरखाना अधिकारमा " जाधव मुधी प्राणानिपातन पचरूखाण कर " इत्यादि सांभळीने गोष्ठामाहिल कहे रहे जे "कालना परिमाण ( अवधि ) रहितपणे पञ्चशण करयु तेज कल्याणकारी रंतु ' विन्यसाधुए तेमनु यचन अयुग कहेवाची गोष्टमाहिले नवम पूर्व पृण थयु र तम जाणीने विनयप्ताधुने कां " तुं शं कही शर्क ? जे तमाग आचार्य बलिकापुष्पमित्र छ तेमने ज कहया घी ' आ प्रमाणे कही श्री. चार्य भगवान्, पामे आधी बोलत्रा लाग्या " श्रीआयरक्षितमुनि महाराने व्याख्यान कर्या प्रमाण तमे शा माटे प्ररूपणा करता नथी ? श्रुतमम् मदो. न्मत्त पनी सूत्रनी आशातना न करो ! श्रीआचार्य भगवान पांसे पोतानों (प्रत्यारण्याननी अपरिमितस्थितिनी) पक्ष कां,श्रीआचार्यदेव पण मी तमारी विचार युक्तिवाळी नयी ने सम्बन्धमा मांभळो यावीषर्नु कालपरिमाण करयाथी आशंमायोग मुनिओने लागशे ? प साइन अयुक्त छ, कारण पचम्टबाण करेल होषाथी ने भयमा आशंसा होर शकनी नथी, वळी कालावधि न का होत तो देवपणाम अविरति आधाथी मतनो मर गान माटे अभिनिश छोडीने यथार्थ वचम स्वीकार करी आ प्रमाणे कया छता ग्यारे का छतां कदाग्रह छोडता नथी त्यारे अन्यगच्छीयस्थघिरोने पृथु तेओष पण भगवान् दुर्वलिकापुष्पमित्र महाराजना कधन प्रमाणेज करवाथी रोषमा आयल भीष्टा बोलवा लाग्यो, तमे म पण कांश जाणता नधी भगवान श्रीतीर्थरईये आ प्रमाणेज निरूपण कर्य ,. तेऔप पण नेनी सभ्मस्वज फर है गोष्ठा