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|| मिध्यादृष्टिरेआभिनिवे: मिथ्यात्वे
साहिलस्वरूप ।।
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वचनो फरमाची गीते अणमण करी परमेष्टीमनी जाप पधार्या, चोमा पूर्ण धया बाद गोष्टामाहिले दशपुरनगर तरफ विहार कर्या. करता देवलोक लोकांना सुखी युगप्रधान भगवान् श्री आर्य रक्षितरि महाराजना स्वतन शान्त जाण्यो दशपुर मां आध्या, षाडना घडाना छष्टान् श्रोदुलिका पुष्प मित्र भगवान्ने आवापदे स्थापला जाण्या, मत्सर जगवाथी जुड़ी बसनिमा रथा, ते आमला जाणी श्री आचार्य भगवन्ते श्रीफल्गुरक्षित विगेरे सुनिन
मने बोला मोकल्या, तेमने आडोअपको उत्तर आपीने गोष्ठा माहिल स्यांजरा श्रीजा साधु श्रावक विगेरे कां छतां पण उपाथये न आया, आचार्य भगवन्ते उपदेश्यु के कषायोनुं माहात्म्य शुओ, जिनवचनना सोना जाणकार आचा उत्तमपुरुषो पण कषायोथी क्लेश करें है, अथवा आश्रय शुं हे ? मोटा गुणवान पुरुषे उपशमभावे करेला कषायो यथाख्यात चारित्रीने पण नीचे पाईछ तो सुरागस्य जीवांनुं कहे शुं ? ? ?
ते बजते श्रीआचार्य भगवान् विन्ध्य विगेरे माधुओने आदमुं कर्ममवाद पूर्व भणाये छे मत्सरभावथी श्रीआचार्य भगवान पांसे आया असमर्थ गोसाहिल पाठ गोवता विन्ध्य साधु पांसे आत्री रोज बेने हे पक "केटक कर्म सुकी भत उपर सुका चूर्णनी प्रेम ओषप्रदशनी साथ संबन्ध मात्र थयेले तत्काल छुप छे, वही के लुक कर्म भीनाशवान्ळी भीत उपर नांखेला चीकाशवाळा चूर्णनी जेम वज्रस्पृष्टपये लांबे काले बुड़े पढे अने कंटक कर्म दूध पाणीना दृष्टान्ते जीवप्रदेशी साथे रिकाचित थयेले बहुकाल सुश्री वेदवा लायक छे. आ मनाने प्ररूपता विन्ध्य माधुने गोण्डा पाहिल क े के जीवप्रदेशनी साथै अन्योन्य ध्यान जो कर्त यह जाय तो सेना वियोग न यह शकवाथी सर्व जीवोनो मोक्षभावप्राप्त थशे " मारे "सपने उपर लागेली कांचळी अयन्द्र ( शरीर साथ आत्मीकृत नहिं ) छतां जेम स्पष्ट ( शरीर उपर चंदिली रेणुनी प्रेम ) मात्र रहे छे तेम ओवप्रदेशनी माघे कर्म पण अवद्ध छतां स्पृष्ट मात्र योग . " विन्ध्यसाधु कहे छे के श्रीगुरु महाराजे उपर मारा कथा प्रमाणे अ व्याख्यान कई छे. गोष्ठा० तारा गुरु शृं आणे छे ? विन्ध्य साधुना मनमां शङ्काया के कदाचित श्रीगुरु भगवाने सत्यस्वरूप व होय पण हें विपरोत करें हशे ! माटे जाने श्रीगुरुमहाराजने पुछु, विनयथी नम्र या श्रीगुरुमहाराजने कर्मस्वरूप पुछ, गुरुमहाराने उपर प्रमाणेन वर्णव. बळी कं के सामने जाणता छतां शामादे
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