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________________ १३४६] | मिथ्याष्टिबारे आभिनिवे०मिथ्यात्ये गोठामाहिलम्वरूपम ॥ द्वार) सोमलिपुत्राचार्य महाराज पांमे जेटलं दृष्टिवादश्रुत हनुं ते मर्य भणी गया, त्याग्बाद श्रीगुरुमहाराजाए ते कालमां युगप्रधान श्रीवनस्वामि महाराजा पुरीकानगरीमां बीगजतां उता नेमनी पांमे दृष्ट्रिवादनो घणो मोटो भाग ( सण दश पूर्व ) छ तम जाणी वीजा माधना परिवार मार्थ आर्यरक्षित मुनिने भणया मात्रे मोयल्या, विहारक्रमे उज्जयिनीमां पधार्या त्यां श्रीभत्र गुतम्ररि महाराज स्यविरक्षमाश्रमण युगप्रधानने विनयमाहित बन्दना करी पोतानो वृत्तान्त निवेदन को श्रीभत्र गुमाचार्य महागजा पोतानो नजीक समय जाणी शरीरनी मलेखना करी अणमण करवा इच्छावाला होइने पोता पांसे सेवा गीतार्थ गिर्याल (नीजामा करकार सरमामः माधि क. राधनार ) न होवाना कारणे मने नीजामणा करावीने तमे अजो तेम फरमान्यु, श्रीआर्यरक्षितजीए. पण तहत्ति ( पचनप्रमाण ) करीने स्वीकायु, काळ करना क्षमाश्रमण युगप्रधान श्रीमन गुप्नाचार्य. भगवन्ते छवटे फरमाव्यु. "तमो श्री आर्यवतम्यामि माथे यमति ( उपाश्रय ) मां न रहेतों भिन्न वसतिमा रहीने भणजो कारण ममा प्रषचन [शामम]ना आधार यशो अन जे सौपक्रमायु श्रीवत्रस्वामि सार्थ पक रात्रि पण निवास करे से तमनीज माथे अणमण करी काळ करे, (अर्थान श्रीवास्यामिनी नेत्री अपूर्व लब्धि हती के तमनी सार्थ एक रात्रि रहेनारने पण नेमनी ज लार्थ अणमणना परिणाम थाय ! ) श्रीआर्यरक्षितजीए तहति अङ्गीकार करी श्रीभत्रगुप्ताचार्य भगवान देवलोक पाये छते श्रीयनस्वामि भगवान पाम पधार्या, 'जुवा उपाश्रये उनर्या, अहि तेज गत्रिना छल्ला पहोरे श्रीआर्यषजस्वामि भगयानने ''कोई आगंतुके. ( अतिथिए ) मा खीरयी भरेल सम्पूर्ण पात्रु कांइक मावशेष रहे तेम पीधु ' आव स्वप्न आन्यु, जाग्या बाद माधुओने की. जुवो जुयों अर्थ कहेनां साधुओने पोते ज फरमायु. में “मारी परमेथी कार माधु आवी खीर समान श्रुतमान ग्रहण करशे पण कांडक अवशेष मार्गपाम रहे पटले क संपूर्ण ग्रहण करी शकशे नहि' नेपामां श्री आर्यरक्षितमी पधार्याः यथोक घिधिनाहित बन्दना करी, श्रीवनस्वामिभगवते स्वागत पृथ्वा साथै पृछेला कांथी अने शा कारणे आन्या अने क्या रभर छ। १ प प्रभोगा उत्तरमा पोतार्नु वृत्तान्त नियंदन कग्या सार्थ क्यारे घटे वहार जुवी वप्ततिमा उत्तयाँ छु नेम का स्यारे श्रीवनस्वामिभगवाने 'जुदी बमतिमा रहेनाग्ने केवीगन अध्ययन थशे तैम फरमावधायी श्रीभद्र.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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