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२५) ॥ श्रीलोकनकाशे तृतीयः सर्गः ।। (सा. १४९) [३५] तानी माता भाषिका रुद्रसीमानं हर्ष--स्वरहित गृहकार्यमा पत्र दाने तेमणे विचार्य के मारा आपयामां सर्व मागरिको हर्ष पाम्पा, विशेषथी मि प्रयन्धु परिवार राजा अधिकारिधर्म साथ पिता हर्ष पाम्या पण माता मध्यस्य देखाय छ माटे जहर कांइक कारण होवू जोपये ! ए षिवारमां ने विचारमा आयेला तमाम लोकोनु स्वागतादि करी, तमाम दिनकृत्य नीषटा. वी सन्ध्याकार्य पीस्याबाद विनयपूर्वक मातापांस गया, भक्ति-बहुमानसहित माताने धरणे मस्तक नमायु दीगवरने माताने नममा कयु, पूज्य माताजी ? आप मध्यस्य के देखा आधिका सहामार तेणे भणेला शाखोर्नु आत्मकल्याण टिए निरर्थकपण, मिथ्यात्वपर्धकपणु, इएफलनु नहि उपजाधवापणुं बताषी पोतार्नु दुःख निवेदन कयु, छेवटे कई के. ओ मने तेमज सर्व माणिवर्गने साचो हर्ष उत्पन्न करवा इच्छतो होय तो है वत्स १ घण लोकने मुखावह परिवाद शाखनु अध्ययन कर्य!!! माताना वचनयी नया रात्रे इष्टिवादनो अर्थ विषारी दशपुरनगरथी नजीकना इचगृहउचाममां रडेला लोसलिपुत्राचार्य महाराज पांसे प्रभातमा जवा नीकळपा, मार्गमा पहेलपोला नजीकमा गाममा रहेनार नघ मंपूर्ण भने वशमो खण्डित पयेल पटळा शेरडीना सांगाना भेटणा साथे आषता पिताना मिश्ना शुभ शकुनयी उत्सवात माहित आगळ वधवा साथै भेटणु माता पांम मोकलाव्यु, अनुक्रमे उपान नजीक पहोच्यो, साधु पांसे जवानी मामाचारी वन्दनषिधि आदि नहि जाणवायी विधिना जाणकार श्रात्रकनी राह जोनों शोहीवार योभाय छे, सेवामा पक उड्डर स्वरवाळा आपकने साधु पाल जना जोर लेनी पाछळ चाल्यो, भाषक मोटा शन्दे साधुना उपाश्रयमा पमता प्रण मीसीही,
दिया प्रतिक्रमण साधुयन्दन म कयु तम नमाम क्षिनकुमारे कार्य पण प्र. यम भाषक आघल न होषाथी भाषकनो प्रणामविधि दरदर भापये की नहोतो जेथी रक्षितकुमार ते जाणी शक्या नहि अने प्रथम प्रवेश करेल दइटर श्रावकने प्रणाम कर्यो नहि, आचार्य महाराजे नवीन श्रावक जाणी मनाछि पूछता साधुओए रञ्जितकुमारनु स्वरूप कटु, आगमनन कारण दुष्टिवाय भणवा माटेनु अणावता आचार्य भगवरने " जो मुं प्रवज्या ला सुहबतबाही पाश तो अनुक्रमे तमने पुष्टिषावनी. लाभ मळशे' दंष्ट्रय आनाथ भगवन्ने मर्ने भाषि शासनप्रभाषकपणुं जाणी अम्यत्र ला जइने दोक्षा आपी ने मनुं नाम आर्यरक्षित स्याप्यु. पोडाज काळमां के शिक्षाओसाथ अगीयार अङ्क तथा