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[ ३४४ ] ॥ मियाद्वारे आभिनिवे० मिध्यामाहियस्वरूपम् ॥ द्वार) शामसां पोताना मद्दश गुणसम्पन्न दुवैलिका पुष्प मित्रने सूरिपद आप पाथी मत्सरभाव पामेला आ गोष्ठामाहिल साधु अभिनिवेशभावयी कर्म जीवना संयोगविश्वमां तथा प्रत्याख्यान विषयमां विपरीत प्ररूपणा करवायी आभि निवेशिक मिध्याख पाम्या, अने ते कारणची श्रीसचे समर्थ व्यक्ति छतां पण संघा कर्या, तेमनुं विस्तारथी वर्णन आवश्यकचूर्णि वृप्ति-उत्तरा ध्ययन टीकाओं नवपदवृदवृत्ति विगेरेमां विस्तारथी आपले छे, तेजोमं क्षिप्तसार नीचे प्रमाणे- श्री ऋषभदेव भगवन्तं प्रत्रज्या लेता पहेला पोताना सो पुत्रो पैकी अवन्ती नामना पुत्रने राज्यभाग तरीके आपली प्रदेश अबती देश तरीके प्रसिद्ध थयो हतो, तेनां अनेक मुख्य भगरां पैकी दशपुर नगरमां इतशत्रु राजा अने तेनी धारिणी पट्टराणी हती, ते राजाना अनेक अमात्यी पैकी ब्राह्मण सोमदेव मन्त्री अने सोमदेव मन्त्रीनी तमाम शास्त्रना भावने जाणनार जाणे मानात् सरस्वतीज न होय ? तेत्री श्रीजिनेश्वर शासनमां हाकानी भींज सुधो प्रेम रागथी रंगायेल आषिका रुद्रसोमा नामनी श्री ही श्राविका रुद्रसोमाने कोइ दिवस रात्रिला चोया पहारे " प्रतिपूर्ण क लमही शोभतो द्रमुखमा उमां प्रवेश करे तेषु शुभ स्व आयु, प्राभाशिक मङ्गल बाजत्रमा शब्दयी जागेल रुद्रसीमा आवश्यकादि सकल कृत्य यथाविधि करी परमानन्दयो पूर्ण थया छतां रहे तेज रात्रिय स्वप्रभाव सूचित पुत्ररूप गर्भ रह्यो, अनुक्रमे पुत्र जन्म थयो, प्रियङ्करा दा सीप राजाने तथा सोमदेवनं वधामणी आपी रक्षित नाम स्थायुं, कालान्त रे मनो बोजो नानो भाइ फल्गुरक्षित थयो, पिता पांसंधी तमाम विद्या रक्षितकुमार भण्या छतां "त्रियासु असंतु पुरिसेल होय' 'संतोष विषु कर्तव्यः स्वदारे भोजने धने । त्रिषु चैष न कर्तव्यां दाने अध्ययने तपे ' आ घा क्योनो विचार करतां रक्षितकुमार पितानी तेमज राजा विरेनों हुकम ला पाटलीपुत्रमां जा ऋग, साम, यजुः, अथर्वण पवार वेद, शिक्षा, कल्प, ज्योतिष, निरुक्त, व्याकरण, नि प छ अङ्ग, इतिहास, मीमांसा, पुराण, धर्मशास्त्र (स्मृति) ए चाँद विद्यास्थानमा पारङ्गत थया, पाछा दशपुरमा आव्यर, वणील सत्कारपूर्वक प्रवेशमहोत्सव राजा पोले सम्मुख जवा साथ कर्या, महोत्सव सहित राजभवनमा जथा पूर्वक पोताना घरे आधी मातवितामें पगेलागी सभामण्डप बेठा, ते नगरमा तेयो को पुरुष नथी के कोइ श्री नथी के जे भेटणा साथ मेमना दर्शने त्यां न आय्या होय ! मात्र पां
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