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२५९) ॥ श्रीलोकमकाशे सनीयः सर्गः ॥ (सा० १४९) (३४३) अर्थ-तस्य यार्थ स्वरूपा ) पदार्थोमी ज अश्रद्धा ने मिध्यास्थ कईवाय, ते १ मांशयिक. २ आभिनहिक, ३ अनाभिग्रहिक पम प्रण प्रकारनु छे, अनेक प्रकार-अनेक धर्मात्मकवस्तुमा बीमा धांना अपलाऐ करी एक धर्मविषयक अध्यवसा ते मिध्यास्त्र छे, अन ने अध्यवसायो अमय होधाथी मिथ्यात्वना पण टलाज भदो पडे छ. " आवाया वयणपहा तारया चेव एति नयवाया । जायदया नयवाया तायाया चव परसमया " ॥१॥ मिथ्यात्वनी प्राप्तिमा अनेक कारणी पैकी आ निम्र लिखित कारणां मुख्य छ. " माभेया पुच्चुग्गह लमग्गीप य अभिनिवेक्षण । मनमा बनु मिच्छन्न माइणमरंमणेणऽहवा " ॥ १ ॥ ___भाषार्थ-यथावस्थित समस्त षस्तुतत्वने स्वीकारना छतां पण · जमाहिनी माफक कोरक पक पदार्थमा विपरीत श्रद्धा थया कप 'निर्भय' धी मिथ्यात्त्व प्राप्त थाय छ १. पहेला कुदर्शन बासमायी बामिन अन्त:करणाका जीषने पारंवार मेंकडो युफियोवडे प्रतिबोध करता छनां पण नेज पूर्वमा ( कुदर्शन ) संस्कारना अनुवर्तन अवार्थी कदामहस्वरूप ' पूर्वयुदाह श्री पहेली अषस्थाना ' गोविन्द 'माधुनी जैम ( पाछली श्रुतज्ञाम भणषायी मिथ्यात्वविनाश पाम्न्यु छे ) केटलाकोने मिथ्याव थाय छ. २. विपरीतष्टि बाळा जीवोनी साथे सम्बन्ध करवा रूप ' सैमर्गवशेष थी ' मौराष्ट्र देशना भाषकनी जेम मिथ्यात्व पामे के ३. खोटा अभिमानयो जुदा स्वरूपवाला पदार्थ ने भिन्नस्वरूप निरूपण करवा रूप ' अभिनिवेश'यो ' गोष्ठामा हिल' नी जम मिथ्यात्व उत्पन्न पाय ठ ४. मत्यवस्तुतत्वना प्रकाशक साधुओना वर्शनमा अभावधी पण सत्यवस्तु अशाम गाद थवाथी मिथ्यात्व प्राप्त पाय , ५. दृष्टान्त गाथा--" मा भेषण जमाली, पुच्चुग्गहियं मि या गोवि. वो । समग्गी सागभिरूम, गोठामलिलो अभिनियमे ॥ १॥
२ आ गोष्ठामाहिल दुधमाकालीन जीवोना उपकारार्थ बारे अनुयांगांने प्रधान पणे जुबाजुवा सूचीमा हुँचनार महाविदह क्षेत्रमाथीलीमम्वरस्वामि भगवन्त स्वयं श्रीमुरवे शकेन्द्र पाले वर्णन करायेल, शन्ने पोताना आयुष्य तथा निगोडाविषिचारथी परीक्षा करी साक्षाम् वन्दम करायेल, किश्विम्म्यम दशपूर्वधारका युगप्रधान भगवान श्री आर्यरक्षितसूरीश्वरजीमा शिष्यसमुदायमांमा माधु हता, संसारपक्षे तेमना मामा हता, स्वजनपक्षपात-नेट--गगादि हित श्री आर्य रक्षितरि भगवाने पीताना भाउ फल्गुरक्षित विगैरे मुनिओने छोरी